Academic literature on the topic 'दकित साकित्य'

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Journal articles on the topic "दकित साकित्य"

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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
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आचार्य Acharya, ओमप्रकाश Omprakash. "सिँजाली खस भाषाको वर्णव्यवस्था". Shabda Sadhana शब्दसाधना 7, № 1 (2024): 145–65. https://doi.org/10.3126/shabdasadhana.v7i1.75099.

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Abstract:
सिँजाली भाषा भारोपेली भाषापरिवारको शतम वर्गको आर्यइरानेली बाल्हीक खस हुँदै विकसित भएको हो । खस पूर्वी पहाडी भाषा सिँजाली पर्वते गोर्खाली र नेपाली भाषा विकसित हुनपुग्यो । वर्तमान समयमा त्यही सिँजा नेपालको कर्णाली प्रदेशको जुम्ला जिल्लामा पर्छ । सिँजादरा, सिँजाउपत्यका, सिँजाभेग भनेर चिनिन्छ । यही नेपाली भाषाको आधार भाषा रहेको सिँजाली खस भाषा भाषामा वर्णव्यवस्था कस्तो छ ? नेपाली भाषासँग यसको समानता र भिन्नता के कति छ भन्ने समस्यामा केन्द्रित भएर सिँजाली भाषाको वर्णव्यवस्थाको खोजी गर्नु नै यस अनुसन्धानात्मक लेखको मुख्य उद्देश्य हो । नेपाली भाषाको प्राचीन स्वरुप सिँजाली भाषा भएकाले यसको अध्ययन आवश्
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अग्रहि, रामानन्द, та अवधेश चन्द्र मिश्रा. "भारतीय समाज में मीडिया का बदलता स्वरूप". International Journal of Science and Social Science Research 1, № 1 (2023): 44–47. https://doi.org/10.5281/zenodo.13328124.

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Abstract:
त बह ुत ही प्रतिभावान एवं ऊर्जावान य ुवा देश है, और यहां के युवा द ेश की तरक्की मे ं या ेगदान देने क े लिए लालयित रहते हंै। जिस तरहभारत के युवा अपने ह ुनर से देश का े आगे ले जा रह े है उसी प ्रकार भारत की वर्तमान मीडिया द ेश में क्रान्ति कारी परिवर्तन ला रही है, वर्त मान मीडिया का ेयुवा मीडिया कह सकते है। जिस प ्रकार मन ुष्य का जीवन काल का विकास बाल्यावस्था से किशा ेरावस्था, किशोरावस्था से युवावस्था एवं प ्रौढ़ा, वृद्धक्रम हा ेता हैठीक इसके विपरीत मीडिया का विकास-वृद्धावस्था स े प्रौढ़ावस्था, प ्रौढ़ावस्था से युवा वस्था क्रम ह ुई जैसे की प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रानिक मीडिया, इलेक्ट्राॅनिकमीडिय
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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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डा, ॅ. नीरज राव. "स ंगीत क े प्रचार-प्रसार म ें स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886994.

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Abstract:
मनुष्य को आदिकाल से ही संगीत मना ेरंजन एव ं आमोद-प्रमोद का साधन रहा ह ै। आदिकाल से ही मानव ने अपने मना ेरंजन क े साधन क े लिये विभिन्न प्रकार क े प ्रया ेग किये जैसे-जैसे मानव अपनी सभ्यता का विकास करता गया व ैसे-व ैसे उसकी समझ आ ैर सूझ-बूझ ने नृत्य, गायन आ ैर वादन की ओर आकर्षि त किया। मानव ने सभ्यता और संस्कृति को समझकर अपने का े प ्रकृति क े साथ तालमेल करते ह ुए संगीत का े सीखा। हमारे पा ैराणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख ह ै कि माँ पार्वती की गायन मुद्रा को देखकर भगवान षंकर ने क्रमषः पाँच राग हिंडा ेल, दीपक, श्री, मेघ, का ैषिक आदि रागों की रचना की एवं संगीत की उत्पत्ति भगवान षिव क े ताण्
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डा, ॅ. स्मिता सहस्त्रब ुद्धे. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधन¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884794.

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Abstract:
संगीत जीवन क¢ ताने-बाने का वह धागा है जिसक¢ बिना जीवन सत् अ©र चित् का अंश ह¨कर भी आनंद रहित रहता ह ै तथा नीरस प्रतीत ह¨ेता ह ै। संगीत में ए ेसी दिव्य शक्ति ह ै कि उसक ¢ गीत क ¢ अर्थ अ©र शब्द¨ं क¨ समझे बिना भी प्रत्येक व्यक्ति उसस े गहरा सम्बन्ध महसूस करता ह ै। ”संगीत“ एक चित्ताकर्शक विद्या ज¨ मन क¨ आकर्षि त करती ह ै। गीत क ¢ शब्द न समझ पाने पर भी ध ुन पसंद आने पर ल¨ग उस गीत क¨ गाते ह ैं, क्य¨ ंकि भारतीय संगीत-कला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अ ंग है एवं भारत क ¢ निवासिय¨ं की जीवनशैली का प्रमाण ह ैं। ”संगीत“ मानव समाज की कलात्मक उपलब्धिय¨ ं अ©र सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का मूर्तमान प्रतीक ह ै। यह आ
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सीमा, शमा, та तिवारी आभा. "पर्यावरण संरक्षण एव ं मानवीय स ंवेदना आज के संदर्भ म ंे". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883549.

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Abstract:
मानव एव ं प्रकृति एक द ूसर े के प ूरक हैं। मन ुष्य का जीवन प्रकृति अर्थात ् पर्यावरण संरक्षण के बिना संभव नही ं है। मन ुष्य की आत्मके ंदि ्रत सोच के कारण प ्रकृति का दोहन करत े हुए उसन े संरक्षण का विचार त्याग दिया। कटत े हुए व ृक्ष, प ्रद ूषित होती हुई नदियाँ, सूखत े ह ुए कुँए, धुँए और धूलका ग ुबार बनती हुई हवा, कीटनाशका ें के जहर से भरी हुई खाद्य सामग ्री, मन ुष्य की सूखती हुई संव ेदना की कहानी कह रहे है ं। हम सब प्रक ृति की संतान ह ै। पँचतत्वों स े निर्मित है, हमारा शरीर: भूमि, वायु, जल, आकाश एव ं अग्नि। ये पाँच तत्व ही पर्यावरण है ं। इनमंे से एक भी यदि प ्रद ूषित होता ह ै तो मानव जीवन भी प
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भाग्यश्री, सहस्त्रब ुद्धे. "सिन े संगीत म ें शास्त्रीय राग यमन का प्रय¨ग - एक विचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886051.

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Abstract:
हिन्दुस्तानी संगीत राग पर आधारित ह ै। राग की परिभाषा अलग-अलग विद्वान¨ं ने अपनी-अपनी पद्धति से दी ह ै परन्तु सबका आशय ”य¨ऽयं ध्वनिविषेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः रंजक¨जन चित्तानां सः रागः कथित¨ बु ेधैः“ से ही संदर्भित रहा है। अतः यह कहा जा सकता ह ै कि भारतीय संगीत की आत्मा स्वर, वर्ण से युक्त रंजकता प ैदा करने वाली राग रचना में ही बसती ह ै। स्वर¨ं क ¢ बिल्ंिडग बाॅक्स पर राग का ढाँचा खड़ा ह¨ता है। मोटे त©र पर ये माना गया है कि एक सप्तक क¢ मूल 12 स्वर सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि राग क ¢ निर्माण में वही काम करते ह ैं ज¨ किसी बिल्डिंग क ¢ ढाँचे क¨ तैयार करने में नींव का कार्य ह¨ता ह ै। शास्त्रकार¨ं न
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Book chapters on the topic "दकित साकित्य"

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"Vartamaan Samay Mai Digitalicaran ka Prabhav." In Educational Transformation in Digital ERA, edited by Narender Kumar. NIILM University, 2024. https://doi.org/10.70388/niilmub/241208.

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Abstract:
िडिजटलीकरण या 'िडिजटाइजेशन' (Digitization) कसी भी कार क सूचना को या कसी भी कार के दतावेज को िडिजटल प म सुरित रखने क या है। आज के आधुिनक समय म इसका महव बत अिधक है यक हम कसी भी कार क सूचना या डाटा को हाड फॉमट म रखना हो तो बत यादा समय तथा कागज आद बबाद होता है। इसी से बचने के िलए अपने सभी कार के दतावेज जैसे- अपने िशा सबधी प, फोटो, कपनी आद के सभी दतावेज आद को अपने िडिजटल मशीन या कयूटर म संिहत करके रखते ह, िजससे हमारा डाटा यादा सुरित रहता है और उसे ा करना बत ही आसान होता है।
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