Academic literature on the topic 'धार्मिक पर्यटन'

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Journal articles on the topic "धार्मिक पर्यटन"

1

भाग्यश्री, सहस्त्रब ुद्धे. "सिन े संगीत म ें शास्त्रीय राग यमन का प्रय¨ग - एक विचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886051.

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Abstract:
हिन्दुस्तानी संगीत राग पर आधारित ह ै। राग की परिभाषा अलग-अलग विद्वान¨ं ने अपनी-अपनी पद्धति से दी ह ै परन्तु सबका आशय ”य¨ऽयं ध्वनिविषेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः रंजक¨जन चित्तानां सः रागः कथित¨ बु ेधैः“ से ही संदर्भित रहा है। अतः यह कहा जा सकता ह ै कि भारतीय संगीत की आत्मा स्वर, वर्ण से युक्त रंजकता प ैदा करने वाली राग रचना में ही बसती ह ै। स्वर¨ं क ¢ बिल्ंिडग बाॅक्स पर राग का ढाँचा खड़ा ह¨ता है। मोटे त©र पर ये माना गया है कि एक सप्तक क¢ मूल 12 स्वर सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि राग क ¢ निर्माण में वही काम करते ह ैं ज¨ किसी बिल्डिंग क ¢ ढाँचे क¨ तैयार करने में नींव का कार्य ह¨ता ह ै। शास्त्रकार¨ं न
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2

साह ू, प. ्रवीण क. ुमार. "संत कबीर की पर्यावरणीय चेतना". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 57–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20219.

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Abstract:
स ंत कबीर भक्तिकालीन निर्ग ुण काव्यधारा अन्तर्ग त ज्ञानमार्गी शाखा क े प ्रवर्त क कवि मान े जात े ह ैं। उनकी वाणिया ें म ें जीवन म ूल्या ें की शाश्वत अभिव्यक्ति एव ं मानवतावाद की प ्रतिष्ठा र्ह ुइ ह ै। कबीर की ‘आ ंखन द ेखी’ स े क ुछ भी अछ ूता नही ं रहा ह ै। अपन े समय की प ्रत्य ेक विस ंगतिया ें पर उनकी स ूक्ष्म निरीक्षणी द ृष्टि अवश्य पड ़ी ह ै। ए ेस े म ें पर्या वरण स ंब ंधी समस्याआ ें की आ ेर उनका ध्यान नही गया हा े, यह स ंभव ही नही ह ै। कबीर क े काव्य म ें प ्रक ृति क े अन ेक उपादान उनकी कथन की प ुष्टि आ ैर उनक े विचारा ें का े प ्रमाणित करत े ह ुए परिलक्षित हा ेत े ह ैं। पर्या वरणीय जागरूक
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3

डा, ॅ. कुमकुम भारद्वाज. ""अम ूर्त चित्रकला शैली म ें र ंग संया ेजन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890369.

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Abstract:
वर्ण अर्था त रंग किसी भी कलाकृति का प्राण ह ै जा े दृष्टि एवं प ्रकाश पर निर्भ र करता ह ै प्रत्येक वस्तु में का ेई न कोई रंग विद्यमान होता ह ै अतः किसी भी वस्तु की पहचान रंगा ें क े कारण होती ह ै। रंग प ्रकाश का गुण ह ै रंग का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता ह ै अपितु अक्षपटल द्वारा मस्तिष्क पर पड़ने वाला प्रभाव रंग ह ै एक ही रूप की दा े वस्तुआ ें को प ृथक-प ृथक रंगा ें द्वारा पहचाना जाता ह ै रंग वस्तु का वह गुण है जिसका अनुभव हम नेत्रा ें द्वारा करते है प्रकाष की उपस्थिति में ही हम किसी वस्तु का े देख सकते ह ै अतः प ्रकाश हमें रंगा ें का बा ेध कराता ह ै। तूलिका और रंगा ें का निर्मा ण क े संब ंध म
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डा, ॅ. कुमकुम भारद्वाज. ""अम ूर्त चित्रकला शैली म ें र ंग संया ेजन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890487.

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Abstract:
वर्ण अर्था त रंग किसी भी कलाकृति का प्राण ह ै जा े दृष्टि एवं प ्रकाश पर निर्भ र करता ह ै प्रत्येक वस्तु में का ेई न कोई रंग विद्यमान होता ह ै अतः किसी भी वस्तु की पहचान रंगा ें क े कारण होती ह ै। रंग प ्रकाश का गुण ह ै रंग का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता ह ै अपितु अक्षपटल द्वारा मस्तिष्क पर पड़ने वाला प्रभाव रंग ह ै एक ही रूप की दा े वस्तुआ ें को प ृथक-प ृथक रंगा ें द्वारा पहचाना जाता ह ै रंग वस्तु का वह गुण है जिसका अनुभव हम नेत्रा ें द्वारा करते है प्रकाष की उपस्थिति में ही हम किसी वस्तु का े देख सकते ह ै अतः प ्रकाश हमें रंगा ें का बा ेध कराता ह ै। तूलिका और रंगा ें का निर्मा ण क े संब ंध म
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5

डा, ॅ. मीनाक्षी स्वामी. "भारतीय सामाजिक परम्परा म ें प्राकृतिक रंग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890343.

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Abstract:
रामधारी सिंह दिनकर का कथन ह ै “भारतीय सामाजिक जीवन परम्पराओं स े सम्प ृक्त ह ै। सिंधु सभ्यता में बर्तनों पर हुई रंग-बिरंगी चित्रकारी हमारी परम्परा में चित्रकला के महत्व का प्रमाण ह ै। लाल आ ैर पीले रंगा ें से रंगी आकृतियाँ भारतीय सामाजिक परम्पराओं का प्रतीक ह ै। समाज के भीतर धड़कती सज ृन की चेतना रंगा ें क े माध्यम से अनुप्रमाणित उद्वेगा ें की अभिव्यक्ति ह ै। प्रकृति से प्राप्त रंगा ें से चित्रा ंकन का प ्रागेतिहासिक काल में ह ुए। जैसे काले, लाल, सफ ेद, पीले, नीले आदि। लोक कला का संब ंध भावनाओं आ ैर परम्पराओं पर आधारित ह ै। यह जन सामान्य की अनुभूतिया ें की अभिव्यक्ति ह ै। देवीय संक ेता े व परम
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6

चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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डॉ., व. ंदना चराटे. "र ंग चिकित्सा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889267.

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Abstract:
रंग मानवीय जीवन में विविध अनुभूतिय¨ ं एव ं संव ेदनाअ¨ं का पर्याय ह ै। मनुष्य की दुनिया भी विविध रंग¨ ं से बनी है। इसीलिये भारतीय संस्कृति में भी विविध संस्कार¨ं का स्वरूप रंग¨ ं क¢ इर्दगिर्द ही समाया हुआ ह ै। ज¨ उत्साह, निराशा, सुख और दुख की अनुभूति करवाते है ं। इसी तरह मनुष्य का शरीर भी विविध रंग¨ ं से निर्मित है, ज¨ उसकी मानसिक आ ैर शारीरिक स्थिति का द्य¨तक है, रंग¨ ं का यह संतुलन प्रकृति अर्थात् ईश्वर प्रदŸा ह¨ता ह ै। इसमें गडबडी या असंतुलन ह¨ने पर मनुष्य अस्वस्थ ह¨ जाता ह ै, तब विविध उपचार या चिकित्सा पद्धति क¢ माध्यम से इन रंग¨ ं क¨ संतुलित कर मनुष्य क¨ स्वस्थ बनाने का प्रयास किया जाता है
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डा, ॅ. अनुराधा अवस्थी. "तनाव प्रब ंधन म ें स ंगीत की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886839.

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Abstract:
तनाव का अर्थ मनुष्य के मन आ ैर मस्तिष्क की उस दशा से ह ैं जिसमें वह अपने विचारों में किसी दबाव और बेचैनी का अनुभव करता ह ै यह ब ेचैनी उसक े शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती ह ै तनाव की स्थिति ऐसे हार्मोन का स्तर बढ़ा देती है जिससे धड़कन तेज हो जाती ह ै, रक्तचाप बढ़ने लगता ह ै और विभिन्न व्यक्तिया ें में विभिन्न लक्षण देख े जाते है। तनाव प ्रबंधन का अर्थ कुछ ऐसी मनेाव ैज्ञानिक आ ैर शारीरिक क्रियाआंे की प ्रणाली विकसित करने से ह ै जिन्ह े ं सीख कर मनुष्य क े शरीर आ ैर मन पर पडने वाले दुष्प ्रभावा ें को कम किया जा सकता ह ै। रिचर्ड लज़ारस तथा सुसैन फोक मेन के अनुसार जब मनुष्य के पास किसी लक्ष्य तक पह
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ऋचा, उपाध्याय. "विभिन्न कालान्तर्गत तत् वाद्या ें म ें अधुनातन प्रयोग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884966.

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Abstract:
भारतीय संगीत में अनेक प्रकार क े तत् वाद्यों की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है । आदि मानव ने अपनी रुचि एवं ब ुद्धि क े आधार पर कलात्मक विविध तत् वाद्यों की नी ंव ही नहीं डाली वरन् उनका उपयोग कर मानव जीवन का े भौतिक धरातल से ऊँचा उठाकर कला को दिव्य तथा आलौकिक धरा पर लाकर प्रतिष्ठित कर दिया । तत् वाद्यों की श्रेणी में किये गये प ्रया ेगा ें क े माध्यम से ही संगीत क े सिद्धान्तों ,श्र ुति, स्वर, सप्तक, एक स्वर से दूसरे स्वर की दूरी, मूछ्र्र च्ना पद्धति आदि का े प ्रमाणित व निष्चित किया जा सका । आज भी इसमें निरंतर अधुनातन प ्रयोग किये जा रह े ह ंै, जिस प्रकार स े प ्र त्येक वस्तु में समयंातराल क े
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श्रीमती, मनीषा शर्मा. "स ंगीत म ें नवाचार का माध्यम स ंस्कृत भाषा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885863.

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Abstract:
मानव सभ्यता के साथ-साथ कलाओं का विकास हुआ है । व ैदिक युग क े अ ंतिम कालखण्ड तक संगीत संब ंधी का ेई स्वतंत्र ग्र ंथ उपलब्ध नही ं ह ै तथापि संगीत कला के संबंध में उल्लेख स्थान पर अवश्य प ्राप्त होते ह ैं । ऋग्वेद में गीत, वाद्य आ ैर नृत्य तीना ें क े संब ंध में अन ेक उल्लेख पाये जाते ह ै ं। ऋग्वेद में गीत क े लिए गीर, गातु, गाथा, गायत्र तथा गीति जैसे शब्दों का प ्रयोग किया जाता था । यह सभी तत्कालीन गीत प्रकार थ े और इनका आधार छन्द आ ैर गायन श ैली थी । गीत तथा उसकी धुन के लिए ‘साम‘ संज्ञा भी रही । साम धुन या स्वरावली क े लिए पर्या यवाची शब्द रहा ह ै। यह तत्कालीन जनसंगीत क े अ ंतर्गत गायी जाने वा
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