Academic literature on the topic 'निर्वाचन क्षेत्र'

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Journal articles on the topic "निर्वाचन क्षेत्र"

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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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Dhiman, Utkarshi, Dr Anu Devi, Dr Manoj Dhiman, Mrs Meenakshi та Mrs Binnu Pundir. "ग्राफिक डिज़ाइन में फ्रीलांसिंगः चुनौतियाँ और अवसर". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 07 (2025): 1–8. https://doi.org/10.55041/ijsrem51364.

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Abstract:
आज के डिडजटल युग मेंफ्रील ांड ांग एक ऐ क ययक्षेत्र बनकर उभर है, डज नेप रांपररक नौकररय ांकी पररभ ष क बदल डदय है। यह न के वल र जग र क एक नय म ध्यम है, बल्कि युव ओां क अपनी रुडिय ांऔर रिन त्मक क्षमत ओां के अनु र क यय करनेकी स्वतांत्रत भी प्रद न करत है। डवशेषकर ग्र डिक डिज इन जै ेरिन त्मक क्षेत्र ां में, फ्रील ांड ांग नेछ त्र ां, नव डदत डिज इनर ांऔर पेशेवर ांक डबन डक ी स्थ डनक ीम के वैडिक स्तर पर क ययकरनेक अव र डदय है। पहलेजह ाँडिज इडनांग क के वल एक ह यक भूडमक म न ज त थ , वही ांअब यह एक पूर्यक डलक, आय- ृजन करनेव ल और स्वतांत्र कररयर डवकल्प बन िुक है। डिडजटल म ध्यम ांकी पहाँि और ऑनल इन क यय ांस्कृ
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ज्योति, ढोल े. ""विश्वविद्यालयीन विद्यार्थिया ें म ें पर्या वरण जागरूकता: एक अध्ययन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.881961.

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Abstract:
आज हम 21वीं सदी म े प्रव ेष कर च ुके है, जिसम ें विज्ञान आ ैर प्रा ैद्योगिकी एक महत्वप ूर्ण भूमिका निभा रहे ह ै। इस प्रगति न े जहां एक आ ैर ब्रह्माण्ड के अन ेक रहस्या ें को सुलझाया ह ै । वही द ूसरी और मानव का अन ेकान ेक सुख सुविधाए ं प्रदान की है। इन मानवीय प्रगति एव ं विकास म े पर्यावरण तो सद ैव सहायक रहा है, परन्त ु इस विकास की दौड ़ मे हमन े पर्यावरण की उप ेक्षा की आ ैर उसका अनियन्त्रित शोषण किया ह ै। तात्कालिक लाभा ें के लालच मे मानव न े स्वयं अपन े भविष्य को दीर्घ कालीन संकट मे डाल दिया है। परिणामस्वरूप जीवन क े स्त्रोत पर्यावरण का अवनयन होता जा रहा है। इसी परिप ेक्ष्य मे यह परियोजना कार्
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दिवाकर, सिंह ता ेमर. "कार्बन टेªडिंग एंव कार्बन क्रेडिट जलवायु परिवर्तन समस्या समाधान म ें सहायक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803452.

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Abstract:
जलवायु परिवर्त न की समस्या के लिए न तो विकसित द ेष आ ैर न ही विकासषील द ेष जिम्मेदारी लेन े का े त ैयार ह ैं। क्या ेंकि र्कोइ विकास से समझौता नहीं करना चाहता है। इसी कारण यह समस्या ओर द्यातक बनती जा रही ह ै। अभी हाल ही में ग ्रीन हाऊस ग ैसा ें के कारण विष्व के समक्ष समस्याएॅ उभकर सामन े आई हैं। 1) ओजोन परत म ें छिद ्र:- धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की परत हमें सूर्य से निकलन े वाली पराबैंगनी किरणों से बचाती हैं। परन्त ु हवाई ईधन और र ेफ्रिजर ेषन उद्योग स े उत्सर्जित होन े वाली क्लोरा े फ्लोरो कार्बन गैस से धरती के वातावरण में विद्यमान ओजोन की सुरक्षा छतरी में छिद ्र हा े गए हैं। 2) समुद ्र स
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

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Abstract:
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी
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श्रीमती, सुधा शाक्य. "र ंग दृष्टि दा ेष: र ंग अ ंधता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889298.

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Abstract:
्रस्तावना:- मानव में र्कइ प्रकार की संव ेदनाएं होती हैं जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श , गंध, स्वाद आदि। इनकी उत्पत्ति उद्दीपका ें से होती ह ै, जिसे व्यक्ति अपने बाह ्य पर्यावरण से ग्रहण करता ह ै, यह उद्दीपक ज्ञानेन्द्रिया ें अर्था त आंख, कान, त्वचा, नाक आ ैर जिव्हा को उद्दीप्त करते ह ैं, आ ैर विभिन्न संव ेदना को उत्पन्न करते ह ै ं। आइजनेक (1972) क े अनुसार ‘‘ संव ेदना एक मानसिक प ्रक्रम ह ै जा े आगे विभाजन या ेग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रिया ें को प ्रभावित करने वाली बाह ्य उत्तेजना द्वारा उत्पादित हा ेता ह ै, तथा इसकी तीव ्रता उत्तेजना पर निर्भ र करती ह ै, आ ैर इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प ्रकृत
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प, ्रो. श्रद्धा दुब े. प्राध्यापक इतिहास. "अजन्ता के चित्र एवं र ंग स ंयोजन (गुप्तकालीन कला क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.892002.

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Abstract:
गुप्तकाल भारत के इतिहास का स्वर्ण -युग कहा जाता ह ै। सुख समृद्धि आ ैर व ैभव के इस काल में सभी कलाओं का समान रूप से उन्नयन ह ुआ। इस युग की सबसे बड ़ी देन ह ै अजंता के भित्तिचित्र। चित्रकारों ने गहन अधंकरामयी गुफाओं में ब ैठकर जिन अपार्थिव कृत्तियों का सृजन किया वे अप्रतिम है। इनमें कथावस्तु और विषय तो भगवान तथागत के जीवन आ ैर जातक कथाआ ें से ही लिए किन्तु उन्ह े ं किसी सीमा में बांध कर नहीं रखा। उनमें सैकड ़ों वर्षों का लोकजीव दर्पण की भाँति प ्रतिबिम्बित है।अजंता में अर्ध-चन्द्राकार पर्व त का े काटकर 29 गुफाएँ बनाई गई ह ै। यह समूहा ें में ब ंटी हुई ह ै। इनमें दसवी ं आ ैर नवीं गुफाएँ बीच के समू
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चन्द, ्रकांता सराफ. "मानव स्वास्थ्य एवं प्रदूषण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803448.

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Abstract:
मानव स्वास्थ्य एक प ूर्ण शारीरिक, मानसिक आ ैर सामाजिक खुषहाली की स्थिति है। अच्छे स्वास्थ्य में शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, बा ैद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है। एक व्यक्ति का े स्वस्थ तब कहां जाता है जब उसका शरीर स्वस्थ और मन साफ और शांत हो। प्रद ूषण एक प्रकार का जहर ह ै जो वायु, जल, धूल आदि के माध्यम से न केवल मन ुष्य के शरीर में प्रव ेष कर उसे रूग्ण बना द ेता है वरन ् जीव जन्त ुओं, पशुपक्षियों, प ेड ़पौधे आ ेर वनस्पतियों को भी नष्ट कर द ेता है। प्रद ूषण अन ेक भयानक बिमारिया ें को जन्म द ेता ह ै। जैसे - कैंसर, तप ेदिक, रक्तचाप, दमा, हैजा, मलेरिय
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स, ुषीला गायकवाड ़. "''शहरी गंदी बस्तियों म ें पर्यावरण संबंधी समस्याएँ''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883551.

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Abstract:
वर्त मान में हम जिस वातावरण एव ं परिव ेष द्वारा चारो ं ओर से घिरे है उस े पर्यारण कहत े है। पर्यावरण में सभी घटकों का निष्चित अन ुपात में स ंत ुलन आवष्यक ह ै, किन्त ु मन ुष्य की तीव्र विकास की अभिलाषा एव ं प ्रकृति के साथ छेड ़छाड ़ के कारण यह स ंत ुलन धीर े-धीर े समाप्त हो रहा है। पृथ्वी पर निर ंतर बढ ़ती जनसंख्या आज विष्व में चि ंता का प्रमुख कारण बन रही ह ै, क्योंकि जनसंख्या व ृद्धि न े लगभग सभी द ेषा ें को किसी न किसी प ्रकार से प ्रभावित किया है आ ैर उनकी प ्रगति में बाधाए ं उत्पन्न की है। जनसंख्या का दबाव विकसित देषों में तो कुछ अधिक नहीं है, किंत ु विकासषील व अविकसित द ेषों म ें स्थिति
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