Academic literature on the topic 'पाणी बचत'

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Journal articles on the topic "पाणी बचत"

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शशिकला, दुबे. "भारतीय आ ैर पाश्चात्य स ंगीत म ें नवाचार विषयक पारस्परिकता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886105.

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Abstract:
वर्तमान समय में व ैश्विक स्तर पर प ्रायः हर क्षेत्र म ें नवाचार क े बढ़ते कदम परिलक्षित हा े रह े ह ैं। संगीत क े क्षेत्र म ें नवाचार का े लेकर नवीन प्रयोग हा े रह े हैं, जिससे संगीत विषयक विभिन्न धारणाओं का े जीवन्त गति मिल रही है। एक समय ए ेसा भी था कि जब भारतीय आ ैर पाश्चात्य संगीत क े मध्य भ ेद का े लेकर कहा जाता था कि भारतीय संगीत को सुनने वाले श्रोताओं क े सिर हिला करते ह ै ं जबकि पाश्चात्य संगीत का े सुनने वालों क े प ैर हिला करते ह ै ं। संगीत क े पारखी सुधीजनों क े बीच आज भी यही मान्यता स्थिर है। लेकिन प ्रयोग की दृष्टि से संयुक्त सृजनात्मकता अपनी बात का े मनवा ही लेती ह ै। संगीत में आ
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डा, ॅ. नीरज राव. "स ंगीत क े प्रचार-प्रसार म ें स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886994.

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Abstract:
मनुष्य को आदिकाल से ही संगीत मना ेरंजन एव ं आमोद-प्रमोद का साधन रहा ह ै। आदिकाल से ही मानव ने अपने मना ेरंजन क े साधन क े लिये विभिन्न प्रकार क े प ्रया ेग किये जैसे-जैसे मानव अपनी सभ्यता का विकास करता गया व ैसे-व ैसे उसकी समझ आ ैर सूझ-बूझ ने नृत्य, गायन आ ैर वादन की ओर आकर्षि त किया। मानव ने सभ्यता और संस्कृति को समझकर अपने का े प ्रकृति क े साथ तालमेल करते ह ुए संगीत का े सीखा। हमारे पा ैराणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख ह ै कि माँ पार्वती की गायन मुद्रा को देखकर भगवान षंकर ने क्रमषः पाँच राग हिंडा ेल, दीपक, श्री, मेघ, का ैषिक आदि रागों की रचना की एवं संगीत की उत्पत्ति भगवान षिव क े ताण्
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विपिन, कुमार. "विभिन्न शैली गत वर्ण विधान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889314.

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Abstract:
चित्र बनाते समय कलाकार इस बात का ध्यान रखता है कि विषयानुरूप कौन से रंग लगाने चाहिये। लघ ु चित्रों में प ्रयुक्त रंग अधिकांशतः चटकीले ह ै। राजस्थानी, जैन तथा पाल शैली क े चित्रा ें में अधिकांश खनिज रंगा े का प ्रयोग किया गया है। इसका कारण तत्कालीन रंगा े की अपलब्धि भी है । गहरे नीले, लाल आ ैर पीले रंगा े का प ्रयोग चित्रा ें में बह ुतायत से मिलता ह ै। राजस्थानी चित्रों की वर्णिका शा ेख आ ैर चटकीले रंगा े की ह ै। क्योंकि आवागमन क े साधन कम होने की वजह से ये चित्र वाह ्य प ्रभाव स े मुक्त है। मुगल शैली क े चित्रा ें में फारस की कोमल रंगा े वाली पद्वति दिखाई देती ह ै। राजस्थानी की आपेक्षा रंगा े
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डा, ॅ. निषा जैन. "जन जातीय रंग कला एव ं सामाजिक जीवन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889253.

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Abstract:
जनजातीय समाज सभ्य एव ं विकसित समाज की तुलना में भिन्न प ्रकृति के हा ेते ह ैं। उनकी अपनी विषिष्ट संस्कृति हा ेती है। प ्रत्येक जनजाति को स्वयं की संस्कृति उन्ह ें दूसरी जनजातियों से भिन्न बनाती ह ै। परम्परागत रूप से विरासत में प ्राप्त र्ह ुइ संस्कृति उनके जीवन का आधार ह ै। इस विषिष्ट संस्कृति कें कारण वे अपनी बहुत सी आवष्यकताए ं प ूर्ण करते ह ैं। विभिन्न सामाजिक उत्सवों रीति रिवाजा ें में जनजातीय कला की झलक दिखलाई देती ह ै।प ्रत्येक जनजाती क े सदस्य कला एवं रंगा ें के माध्यम से जीवन की ख ुषियां मनाते ह ैं जो उनक े परम्परागत वस्त्रा ें, रंग बिरंगे आभूषणों एवं श्र ृंगार से दिखलाई देता ह ै। इस क
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5

डा, ॅ. सुवर्णा वाड. "स ंगीत क े पाठ्यक्रम में परिवर्तन की स ंभावित दिशाएं". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.887000.

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Abstract:
प्रस्तुत विषय की प्रस्तावना करते समय विषय के प्रत्येक बिन्दु का विश्लेषण करना आवश्यक ह ै जैसे संगीत के पाठ्यक्रम में परिवर्तन क्या ें? तथा देवी अहिल्या विश्व विद्यालय का विशेष संदर्भ क्या ें? मेरी सम्पूर्ण शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में होने , मैं गत 36 वर्षों से क ंठ संगीत के पाठ्यक्रम क े सम्पर्क में ह ूँ। दे.अ.वि.वि का कंठ संगीत का पाठ्यक्रम र्कइ वर्षा ें तक एक समान ही रहा परन्तु कम्प्यूटर एव ं कॉमर्स जैसे विषयों क े कन्या महाविद्यालयों मे ं पदार्प ण होने से छात्राओं की सा ेच म ें परिवर्तन आया। प ूर्व में कला संकाय में छात्राओं की संख्या काफी सराहनीय होती थी परन्तु धीरे धीरे छात्राओं
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