Academic literature on the topic 'प्राचीन जलवापर'

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Journal articles on the topic "प्राचीन जलवापर"

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निखिल, जोषी. "आर्थि क विकास एव ं जल प्रदूषण तथा जल संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882895.

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Abstract:
आर्थिक विकास करना मन ुष्य न े सदा से चाहा ह ै। यह भी तथ्य है कि स्वच्छ पर्यावरण के बिना मन ुष्य का जीवन अकल्पनीय ह ै। मन ुष्य और पर्यावरण क े इस रिष्त े में किसी भी हिस्से को बड ़ी चोट न केवल इस रिष्ते को खतर े म ें डाल द ेती ह ै बल्कि दोनों के अस्तित्व भी खतर े में पड ़ जात े हैं। पर्यावरण बिगड ़ेगा ता े मानव जीवन प्रभावित हा ेगा। इसका यह अर्थ नहीं ह ै कि आर्थिक विकास की कीमत पर पर्या वरण बचायें या पर्यावरण की कीमत पर आर्थिक विकास हासिल कर ें। दोनों के बीच एक संत ुलन की आवष्यकता ह ै ताकि मानव जीवन सुरक्षित बना रहे आ ैर लाभांवित भी हो। दोनों का केन्द ्र मानव ही है। प ्रकृति आ ैर मानव पृथ्वी पर
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अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

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Abstract:
मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
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डा, ॅ. शोभना जोशी. "''कथक नृत्य म ें नवाचार आ ैर डाॅ. सुचित्रा हरमळकर''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886804.

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Abstract:
कवि जयश ंकर प्रसाद की प ्रसिद्ध प ंक्तियाँ ह ैं - प ुरातनता का यह निर्मोक, सहन करती न प ्रकृति पल एक। नित्य-नूतनता का आनंद, किय े ह ै ं परिवर्तन में ट ेक।।1 अर्था त् प ्रकृति प ुरातन का वहन पल भर क े लिए भी नहीं करती ह ै। नित्य नवीनता आनंददायी होती ह ै अतः प ्रकृति परिवर्तन की टेक पर, नित्य नवीन रूप धारण करती है। इसीलिए प ्रकृति रमणीय ह ै। प ्रकृति में मिट्टी, जल, हवा, अग्नि है जो हमारे संपर्क में ह ै और अंतरिक्ष जो दृश्यमान ह ै। इन मुख्य तत्वों क े अतिरिक्त प ्रकृति के अ ंग ह ै ं- समस्त, जल, थल, नभचर-जीव, ज ंगल। ज ंगल में व ृक्ष, पा ैधे, लताएँ है ं। प्रकृति के ये सभी अंग व ैविध्य से भरपूर ह ै
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ममता, का ेठारी. "पर्यावरण संरक्षण एव ं हिन्दू धर्म". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883537.

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Abstract:
पर्यावरण के अन्तर्गत वायु जल भूमि वनस्पति प ेड़ पौधे, पशु मानव सब आत े है । प ्रक ृति में इन सबकी मात्रा और इनकी रचना कुछ इस प्रकार व्यवस्थित है कि प ृथ्वी पर एक संत ुलनमय जीवन चलता रह े । विगत करोंड ़ांे वर्षो से जब से पृथ्वी मन ुष्य पशुपक्षी और अन्य जीव-जीवाणु उपभा ेक्ता बनकर आये तब से, प्रकृति का यह चक्र निर ंतर और अबाध गति से चल रहा ह ै । जिसको जितनी आवष्यकता है व प्रकृति से प्राप्त कर रहा है आ ैर प्रक ृति आगे के लिये अपन े में और उत्पन्न करके संरक्षित कर लेती है । मानव इतिहास का अवलोकन कर े तो आज स े प ंाॅच सौ सात सा ै वर्ष प ूर्व मन ुष्य प ्रकृति के समीप था । प्रक ृति से मिले भोजन पर साम
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ममता, गौड ़. "पर्यावरण एवं भारत म ें विधिक प्रावधान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882533.

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Abstract:
पर्यावरण शब्द परि$आवरण शब्दों से मिलकर बना है, इसका शाब्दिक अर्थ हमार े चारा ें ओर के उस वातावरण से है, जिसमें जीवधारी रहत े है ं। इस प्रकार पर्या वरण भौतिक तथा जैविक अवयव या कारक का वह सम्मिश्रण है, जो चंह ु ओर से जीवधारिया ें को प्रभावित करता है। इस प्रकार पर्या वरण जीवा ें को प्रभावित करन े वाल े समस्त भौतिक एव ं जैविक कारकों का योग होता ह ै। यह कहा जा सकता है कि हमारी प ृथ्वी का पर्या वरण वह बाहरी शक्ति है जिसका जीवन पर स्पष्ट प्रभाव द ेखा जा सकता है। य े शक्तियाँ परस्पर सम्बद्ध हैं, परिवर्तनशील हैं तथा सम्पूर्ण एव ं संय ुक्त रूप मे ं जीवन पर प ्रभाव डालती हैं। इनमें भौतिक कारक के रूप म ें
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सचिव, ग©तम (श¨ध छात्र्ा). "चित्र्ाकला म ंे र ंग (प्राग ैतिहासिक काल स े वर्तमान काल तक क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.892056.

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Abstract:
मानव जीवन में वर्ण (रंग) का महत्वपूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु क¨ई न क¨ई रंग लिये हुये ह ै। वस्तुअ¨ ं के धरातल में रंग ह¨न े के कारण ही वह हमें दिर्खाइ देती ह ै। रंग¨ ं के प्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नहीं है। इसीलिये आदिम गुफाचित्र्ा¨ं से ल्¨कर आधुनिक मानव तक ने स©न्दर्य क े विकास में रंग¨ ं का सहारा लिया है। रंग¨ ं का महत्व हमें मानव जीवन के इतिहास के हर अध्याय में देखने क¨ मिलता ह ै। वर्ण प्रभाव अर्थात् रंग प्रभाव के आधार पर चित्र्ा क¨ स©न्दर्य प्रधान बनाया जा सकता है। रंग हमारे जीवन का महत्वप ूर्ण हिस्सा है; इसके बिना प्रकृति उपस्थित किसी भी पदार्थ या जीव का अपना क¨ई वजूद नहीं ह ै। रंग¨
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स, ंध्या जैन. "वैदिक काल म ें पर्यावरणीय संरक्षण क े प ्रति च ेतना पर एक अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883020.

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Abstract:
हिन्द ू धर्म के सबसे प्राचीन ग ्रंथ व ेद आ ैर उपनिषद ् है इनमें जगह जगह प्रक ृति से विरासत में मिली सभी वस्त ुओं का जीवन स े गहरा जुड ़ाव मिलता है आ ैर इन सभी को अत्य ंत पवित्र मानकर लोग इनकी प ूजा अर्चना करत े है। व ेद वैदिक युग की शिक्षा के पाठ ्यक्रम की पाठ ्यपुस्तकें रही है शिक्षार्थी व ेद मंत्रों तथा सूक्तियों को कंठस्थ करत े और जीवन का अंग बनात े। वैदिक काल म ें पर्यावरण शिक्षा, प्रद ूषण के कारणा ें और निवारण के विषय में चिंतन किया जाता रहा ह ै। वैदिक युग के सिद्ध ग्रंथों न े पर्यावरण शिक्षा का े सर्वो परि माना। उनकी सीख आज और अधिक प ्रांसगिक व हितसाधक है।
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डा, ॅ. लक्ष्मी श्रीवास्तव. "चित्रकला आ ैर रंग-परस्पर अन्या ेन्याश्रित सम्बद्धता एव ं महत्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.893172.

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Abstract:
कलाओं में चित्रकला सबसे श्र ेष्ठ ह ै जा े धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली ह ै। आ ैर घर में परम मंगल होता ह ै जहाँ इसकी प ्रतिष्ठा की जाती है। चित्र सूत्र में चित्रकला को समस्त कलाओं में श्र ेष्ठ कहा गया है। समस्त कलाए ँ हमारे जीवन को सुन्दर आ ैर रसमय बनाती ह ैं। वात्सायायन ने ‘कामसूत्र’ ग्रन्थ में चा ै ंसठ प ्रकार की कलाआ ें का उल्लेख किया ह ै। ‘‘कामसूत्र क े विद्यासमुद्द ेष्य प ्रकरण में काम की उपायभ ूत 64 कलाओं में ‘‘आलेख्य’’ की भी गणना वात्सायायन ने की ह ै, जिनका उल्लेख ‘‘यजुर्व ेद’’ के (3014-22) मंत्रा ें में ह ै।’’ 1 चित्रकला की गणना समस्त कलाआ ें में अतिश्रेष्ठ और उद्देश्य प ूर्ण रूप
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प, ्रदीप कुमार चा ेपडा. "गायन स् ंागीत में नवाचार म ंच की आधुनिक तकनीक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.885871.

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Abstract:
स ंगीत एक ऐसा माध्यम ह ै, जो साधक आ ैर श्रोता दोनों का े एक सम्मोहन मंे बाँध कर रखता ह ै, प ंरन्तु मन ुष्य की ध्वनि की कुछ सीमायंे होती ह ै, आ ैर जहाँ तक उसकी ध्वनि प ्राकृतिक रूप से जाती है, वहाँ तक ही वह असरदार सिध्द होती ह ै, इसलिए रिकाॅर्डिंग को मृत संगीत कहा जाता है । प ुराने समय मे संगीत में जो, मंच हा ेता था उसकी कुछ सीमाये ं थी, उससे सिर्फ उतने ही लोग लाभ उठा पाते थ े, जहाँ तक साधक (संगीतकार/ वादक) की ध्वनि पहुॅंचें । परन्तु यह बात सही ह ै, कि उस समय मनुष्य की शक्ति (भा ैतिक रूप से ) आज क े मनुष्य की तुलना में ज्यादा होती थी । इसके प ्रमाण रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्र ंथो में देखने
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श्रीमती, सुधा शाक्य. "र ंग दृष्टि दा ेष: र ंग अ ंधता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889298.

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Abstract:
्रस्तावना:- मानव में र्कइ प्रकार की संव ेदनाएं होती हैं जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श , गंध, स्वाद आदि। इनकी उत्पत्ति उद्दीपका ें से होती ह ै, जिसे व्यक्ति अपने बाह ्य पर्यावरण से ग्रहण करता ह ै, यह उद्दीपक ज्ञानेन्द्रिया ें अर्था त आंख, कान, त्वचा, नाक आ ैर जिव्हा को उद्दीप्त करते ह ैं, आ ैर विभिन्न संव ेदना को उत्पन्न करते ह ै ं। आइजनेक (1972) क े अनुसार ‘‘ संव ेदना एक मानसिक प ्रक्रम ह ै जा े आगे विभाजन या ेग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रिया ें को प ्रभावित करने वाली बाह ्य उत्तेजना द्वारा उत्पादित हा ेता ह ै, तथा इसकी तीव ्रता उत्तेजना पर निर्भ र करती ह ै, आ ैर इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प ्रकृत
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