Academic literature on the topic 'वैश्वीकरण'

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Journal articles on the topic "वैश्वीकरण"

1

Ranga, Reena. "समकालीन हिंदी कविता में वैश्वीकरण और व्यवसायीकरण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 6, № 1 (2025): 122–25. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v6.i1.2025.5657.

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Abstract:
यह शोध पत्र समकालीन हिंदी कविता पर वैश्वीकरण और व्यावसायिकता के प्रभाव का विश्लेषण करता है। वैश्विक संस्कृति के प्रसार और बाजार आधारित विचारधाराओं के प्रभाव ने हिंदी काव्य-प्रकटीकरण में परिवर्तन और प्रतिरोधकृदोनों को जन्म दिया है। कुछ कवि उपभोक्तावाद, सांस्कृतिक क्षरण और पूंजीवादी शोषण जैसे विषयों की आलोचनात्मक व्याख्या करते हैं, जबकि अन्य कवि वैश्वीकृत संसार में पहचान और आत्मीयता की दुविधाओं को अभिव्यक्त करते हैं। यह अध्ययन समकालीन हिंदी की चयनित कविताओं की विषयवस्तु, भाषा और शिल्प का विश्लेषण करता है, ताकि यह समझा जा सके कि कवि स्थानीय और वैश्विक संदर्भों के संगम पर कैसे संवाद करते हैं। मंगल
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2

गर्ग, डाॅ रत्ना. "सांस्कृतिक वैश्वीकरण". International Journal of Applied Research 7, № 7S (2021): 95–97. http://dx.doi.org/10.22271/allresearch.2021.v7.i7sb.8684.

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3

प्रततमा, सोनी. "वैश्वीकृत संगीत में इंटरनेट की भूममका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886996.

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Abstract:
ैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थस्र्ानीय या क्षेत्रीय वस्तुओंया घटनाओंकेब्वश्व पर रूपांतरण की प्रब्िया हैइसेएक ऐसी प्रब्िया का वणथन करनेक ब्िए भी प्रयक्तु ब्कया जा सकता द्वारा परुेब्वश्व केिोग ब्ििकर एक सिाज का ब्निाथण कर सकतेहै,तर्ा एक जटु होकर कायथकरतेहै वैश्वीकरण का उपयोग अकसर आब्र्थक वैश्वीकरण केसन्िभथिेंब्कया जाता हैब्कन्तुकिा केक्षेत्र िेंभी अभतूपवूथदृश्य दृब्िगोचर होता है,वैश्वीकरण का एक अर्थवशधुैवं कुटुम्बदकि की अवधारणा ब्जसनेसम्बपणूथवसधुा को एब्ककार कर एक पाररवाररक सत्रू िेंबांध ब्ियाहै। आज हिारी भारतीय सांगीब्तक परंपरा िेंवैश्वीकरण का अत्यंत वयापक प्रभाव दृब्िगोचर होता हैइस वैश्वीकरण नेकई नव
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कुमार, नवीन, та सन्तोष कुमार सिंह. "जनजातियों पर वैश्वीकरण के प्रभाव का समाजशास्त्रीय अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 5 (2024): 263–70. http://dx.doi.org/10.29070/ywvbsm94.

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Abstract:
यह शोध पत्र भारत की जनजातियों पर वैश्वीकरण के सामाजिक प्रभावों का समाजशास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत करता है। वैश्वीकरण ने जहां आर्थिक विकास और आधुनिक सुविधाओं तक पहुँच को सुलभ बनाया है, वहीं इसके परिणामस्वरूप जनजातीय पहचान और पारंपरिक प्रथाओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इस अध्ययन में गुणात्मक और मात्रात्मक विश्लेषण के संयोजन से जनजातीय आजीविका, प्रवासन पैटर्न, शिक्षा, और स्वास्थ्य देखभाल में आए परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि वैश्वीकरण के लाभों और जनजातीय धरोहर के ह्रास के बीच एक जटिल संबंध है, जिससे यह आवश्यक हो जाता है कि विकास की ऐ
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डॉ., नरेंद्र सीमतवाल, та कुमार वर्मा महेन्द्र. "राष्ट्रवाद का उदय तथा वैश्वीकरण: एक समीक्षात्मक अध्ययन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 3, № 2 (2024): 127–30. https://doi.org/10.5281/zenodo.10932882.

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Abstract:
यह शोध पत्र राष्ट्रवाद और वैश्वीकरण के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत करता है। राष्ट्रवाद के उदय और विकास के संदर्भ में इसने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभावों का विश्लेषण किया है। साथ ही, वैश्वीकरण की प्रक्रिया और इसके प्रमुख कारकों को भी ध्यान में रखते हुए, इसने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, संचार, तकनीकी उत्पादन, और सांस्कृतिक विनिमय के प्रभावों का विश्लेषण किया है । इस अध्ययन में, राष्ट्रवाद और वैश्वीकरण के संबंध में उठने वाली चुनौतियों और नई संभावनाओं पर भी विचार किया गया है। यह शोध पत्र राष्ट्रवाद और वैश्वीकरण के महत्वपूर्ण मामलों को
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6

Kumar, Abhyaditya Shubham, та Balram Singh Dr. "भारतीय समाज पर वैश्वीकरण का प्रभाव". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 6 (2024): 160–64. https://doi.org/10.5281/zenodo.15239437.

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Abstract:
शहरीकरण और वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप<strong><em>, </em></strong>भारतीय समाज में गहरा परिवर्तन हो रहा है। अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित संरचना आर्थिक नीतियों से बहुत प्रभावित होती है। समाज में आय<strong><em>, </em></strong>बचत<strong><em>, </em></strong>निवेश और रोजगार के स्तर भी सरकार द्वारा बनाई और लागू की जाने वाली आर्थिक नीतियों से बहुत प्रभावित होते हैं।<strong><em> </em></strong>वैश्वीकरण अलग-अलग जगहों पर महिलाओं के अलग-अलग समूहों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करता है। इस तरह की पहचान की राजनीति सिर्फ़ दलित और पिछड़े वर्ग के संगठनों तक ही सीमित नहीं है। अन्य प्रमुख जाति और उच्च जाति समूह भी
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Daya Shankar та Dr. Dharmendra Kumar Sonker. "वैश्वीकरण और बदलते परिदृश्य में संयुक्त परिवार का अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 1 (2024): 254–62. http://dx.doi.org/10.29070/47w3bq91.

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Abstract:
वैश्वीकरण अपने शाब्दिक अर्थ में स्थानीय या क्षेत्रीय चीजों या घटनाओं को वैश्विक में बदलने की प्रक्रिया है। इसका उपयोग उस प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी किया जा सकता है जिसके द्वारा दुनिया के लोग एक समाज में एकीकृत होते हैं और एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है। पारंपरिक मूल्य महत्व खो रहे थे और समाज में नई सोच, नए मूल्य जुड़ रहे थे। आधुनिक युग में पुरुष और महिला को समान माना जाएगा। गांव के लोगों के स्वास्थ्य क्षेत्र की सेवा के लिए नई स्वास्थ्य उपचार और सुविधाएं खोली गईं। सभी व्यक्तियों को समाज में समान अवसर दिए गए। हमारे
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मन्जू, रानी, та धीरज बाकोलिया डॉ. "वैश्वीकरण और नारी आत्मनिर्भरता: एक विश्लेषण". SIDDHATNA'S INTERNATIONAL JOURNAL OF ADVANCED RESEARCH IN ARTS & HUMANITIES 1, № 5 (2024): 42–47. https://doi.org/10.5281/zenodo.11654621.

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Abstract:
20वीं शताब्दी की एक प्रमुख घटना है - वैश्वीकरण। इसके अंतर्गत आतंकवाद, पर्यावरण, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि विषयों के साथ-साथ नारी विमर्श जैसे ज्वलंत विषय का भी अध्ययन किया जा रहा है। नारी विमर्श सिर्फ एक देश की सीमाओं तक की सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर नारी सशक्तिकरण के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। पाश्चात्य देशों में नारी स्वतंत्रता के लिए अनेक आंदोलन हुए। संचार साधनों, पूंजीवाद तथा बाजारीकरण ने जहां नारी को आत्मनिर्भर तो बनाया परंतु उसके अस्तित्व पर आज भी प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं।&nbsp;संवैधानिक व सामाजिक अधिकार स्त्री को पुरुष के समान ही प्राप्त है परंतु आज भी नारी को अपने जीवन पर
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डॉ., सीताराम सिंह तोमर. "भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के प्रभाव". International Educational Applied Research Journal 08, № 05 (2024): 46–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.14467703.

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Abstract:
भारतीय अर्थव्यवस्था मूलतः एक अन्य विकसित अर्थव्यवस्था है। आजादी मिलने के बाद 1951 से आयोजन को सहारे यह विकास कार्य में संलग्न है। अतीत की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था इस दौरान विकास की द्विशा में निःसंदेह आगे बढ़ी हैं लेकिन इस विकास के बावजूद जनसाधारण की गरीबी और बेरोजगारी पर विशेष प्रभाव नहीं पढ़ पाया है। उनका जीवन स्तर अभी भी बहुत नीशा और असंतोषजनक है। अतः विकास कार्य का संचालन इस ढंग से किया जाना चाहिए, जहाँ एक ओर विकास की गति तेज हो सके, वहीं दूसरी ओर देश के जनसाधारण को सामाजिक न्याय उपलब्ध हो और उनका जीवन स्तर सही अर्थ में ऊपर उठ सयो।
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सिंह, प्रतिमा. "वैश्वीकरण का अवधारणात्मक विकास व महिला सशक्तीकरण". International Journal of Political Science and Governance 2, № 1 (2020): 13–15. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2020.v2.i1a.26.

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