Dalip, Kumar. "प्राचीन भारत में विहार". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 110–15. https://doi.org/10.5281/zenodo.835425.
Abstract:
बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को विहार कहा जाता है विहार के अन्दर एक बड़ा मण्डप होता था, उसमें तीन या चार छोटी कोठरियां खोदी जाती थी, सामने की दीवार में प्रवेश के लिए एक द्वार होता था और उसके सामने स्तम्भों पर आश्रित एक बरामदा रहता था । भीतरी मण्डप की कोठरिया चौकोर होती थी, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे, एक भिक्षु के लिए कोठरी बनी होती थी,1 दो भिक्षुओं के लिए द्विगर्भ और तीन भिक्षुओं के लिए त्रिगर्भ शालाएं बनाई जाती थी । जहां पर बहुत से भिक्षु निवास करते थे उनको संधाराम कहा जाता था । विहार की कोठरियां छोटे आकार की होती थी । इनका आकार 9ग्9 फूट होता था । इन कोठरियों में एक तरफ भिक्षुओं के सोने के लिए लम्बी चौकियां बनी होत थी।2 मैदानी क्षेत्रों यथा - मथुरा, नालंदा आदि में विहारों को बनवाने हेतु ईंट एवं मिट्टी का प्रयोग किया गया । ह्वेनसांग ने नालंदा विहार के बारे में लिखा है - कि नालंदा में भिक्षुओं को प्रत्येक आवास चार मंजिल का था, माण्डप या देव मूर्तियों अंकित थी । उन सुन्दर विहारों को यवन आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया । कुषाण काल में अनेक बौद्ध विहारों का निर्माण हुआ । कार्ले, बेडाना, नासिक, भाजा, पीतलखोरा, नागार्जुनोकोंडा, कनहेरी इत्यादि स्थानों पर इसी युग में विशाल सुन्दर विहारों का निर्माण हुआ । अजन्ता के विहार अजन्ता महाराष्ट्र में स्थित है । अजन्ता में 29 गुफाओं में से 25 विहार हैं । जिसका वर्णन इस प्रकार है - गुफा संख्या 3 इस को हाथी खाना कहते हैं । यह गुफा एक विहार है। इस गुफा का बरामदा (29ञग्7ञ) है ।3 यह सातवीं शताब्दी का है । इसके बरामदे में चार खम्भे हैं । इस गुफा की दीवारों के चित्र तथा छत का अलंकरण बहुत कम दिखाई देता है । इस गुफा में भगवान बुद्ध तथा बोधिसत्वों के कई चित्र हैं । गुफा संख्या 4, 5, 64 ये सभी गुफाऐं विहार है, गुफा संख्या 4 रंग ‘महल’ चित्रशाला है । गुफा संख्या 4 तथा 5 के सामने एक बहुत बड़ा बरामदा है । जिसमें 20 खम्भे लगे है । गुरुा संख्या 6 अजन्ता में केवल एक ऐसा विहार है जिसमें 2 मंजिल है । इसके ऊपर की मंजिल का बरामदा गिर चुका है । दोनों मंजिल के हाल 53 फुट चौकोर हैं ।5 गुफा संख्या 12, 13 और 8 ये सभी विहार है । इनमें गुफा संख्या 12 सबसे पुरानी है ।6 यह दानवी गुफा के साथ थी । गुफा संख्या 13 का निर्माण बाद में हुआ जब भिक्षुओं की संख्या में वृद्धि हुई । गुफा संख्या 8 एक छोटा विहार है । गुफा संख्या 13 में खम्भे नहीं थे । इसकी माप 14ग्17 फीट है । गुफा संख्या 14, 15, 16 ये भी विहार है । गुफा संख्या 14 में मूर्तिकला तथा पालिश नहीं है । इसकी तिथि 100ई. के लगभग है । गुफा संख्या 15 का बरामदा 30 फुट गुफा के स्तम्भ टूट चुके है ।7 इस गुफा का मण्डप 34 फुट चौकोर है तथा 10 फुट ऊँचा है । इसमें मूर्तिकला का कार्य किया गया है । गुफा संख्या 16, 65 फुट चौकोर विहार है। इसके मण्डप में 20 खम्बे हैं । इसमें महात्मा बुद्ध व बैठे हुए आकृति का निर्माण दिया गया है । गुफा संख्या 11 को महायान युग में बढ़ाया गया यह भी डाक विहार है । गुफा संख्या 21, 22, 23, 24, 25, 27 ये सभी गुफाऐं पहाड़ी की पश्चिमी तरफ गुफाओं की अन्तिम श्रंृखला में खोदी गई है । ये सभी गुफाऐं चौथी सातवीं शताब्दी के मध्य में खोदी गई है ।8 इन सभी गुफाओं के मुख पूर्व की तरफ है । सूर्य का जब प्रकाश इन पर पड़ता है तो ये चमकने लगती हैं। गुफा संख्या 21 एक बड़ा विहार है । बरामदे की दोनों तरफ अंत में छोटे कमरे है । इसका मण्डप 51 फुट चौकोर है । यह पांचवी या छठी शताब्दी ई. का है ।9 गुफा संख्या 22 एक छोटा विहार है । यह 17 फुट चौकोर है । इसमें कोई खिड़की नहीं है । गुफा संख्या 23 भी एक विहार है । यह 51 फुट चौकोर है । यह 12 फुट ऊंचा है इसके अन्दर स्तम्भ है । गुफा संख्या 24 के बरामदे में 6 स्तम्भ है । अगर यह गुफा पूर्ण होती तो यह इस श्रृंखला की सबसे बड़ी तथा सुन्दर गुफा होती, गुफा संख्या 21 भी एक छोटा विहार है । इसमें एक बरामदा है अन्दर कोई चित्रकारी नहीं पाई गई । गुफा संख्या 27 एक 49 फुट चौड़ा तथा 31 फुट लम्बा मिला है । इसके स्तम्भ नहीं है । बाघ के विहार बाघ की गुफाऐं विन्धय पर्वत के दक्षिण में पांच सौ फुट की ऊंचाई पर है । यह ग्वालियर रियासत में है । बाण नदी के तट से लगभग 250 फुट की ऊंचाई पर है । यहां पर पर्वत में 9 गुफाऐं खोदी गई थी । ये सभी विहार है । इस श्रृंखला की पहली गुफा नष्ट हो चुकी है । दूसरी गुफा का नाम पाडवं गुफा है । तीसरी गुफा को स्थानीय लोग हाथी खाना के नाम से जानते है । चौथी गुफा को रंग महल कहा गया है। गुफा संख्या 1 बाघ की पहली गुफा एक छोटे आकार का विहार थी, इसके अन्दर मूर्ति नहीं है । इस गुफा के अन्दर कोई खिड़की नहीं है । इसके सामने एक छोटा बरामदा है । ये गुफाऐं चौथी तथा छठी शताब्दी के मध्य खोदी गई है ।10 गुफा संख्या 2 इस गुफा की दीवार पर स्तूप की आकृति है । यह लगभग 5वीं शताब्दी ई. में खोदी गई है । इस गुफा के खम्बें पर नक्काशी का काम किया गया है । इस गुफा की दीवार पर किसी समय बहुत सुन्दर चित्र रहे होंगे किन्तु अब नष्ट हो चुके है ।11 गुफा संख्या 3 यह गुफा भी एक विहार है । इसकी चित्रकारी कुछ मिट चुकी है । इस गुफा में महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों के कई चित्र है । इस गुफा के चित्र अमरावती के अर्धचित्रों की याद दिलाते हैं । गुफा संख्या 4 चौथी और पांचवी गुफा एक-दूसरे से सटी होने के इनके सामने लगभग 220 फुट का बरामदा है । इस बरामदे में 20 खम्भें है । हर बरामदें का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है । यह इस श्रृंखला की सबसे बड़ी गुफा है । यह 94 फुट चौकोर है ।12 गुफा संख्या 5 यह गुफा 96ग्43 फुट की है । इस गुफा में चार खिड़कियां और एक दरवाजा है । इस गुफा को पाठशाला कहते हैं । इस गुफा के खम्भे आकर्षक का केन्द्र है । इस गुफा के साथ पांच कोठरियां का निर्माण किया गया है । इन कोठरियों में भिक्षु निवास करते थे ।13 गुफा संख्या 6 यह गुफा भी एक विहार है । इसमें किसी प्रकार की कोई विशेषता नहीं है । इस गुफा का कोई बरामदा नहीं इसमें एक दरवाजा और 2 खिड़कियां है यह लगभग 48 फुट चौकोर है । इसके अन्दर 6 खम्भे थे जो अब गिर चुके है ।14 गुफा संख्या 7 यह लगभग 86 फुट चौकोर है । इसमें 20 स्तम्भ है तथा 20 कोठरियां है । यह गिरी हुई छत तथा खम्भें के कारण बंद है । गुफा संख्या 8, 9 इन गुफाओं के अन्दर प्रवेश नहीं किया जा सकता । पितलखोरा के विहार पितलखोरा के भग्न विहार की कोठरियां चौकोर बनी है । पश्चिमी शक-क्षत्रप नहपान तथा दक्षिण के सातवाहन नरेश गौतमी पुत्र श्री शातकर्णि तथा यज्ञश्री के शासन काल (ई. सन् 130 एवं 180ई.) में इन विहार का निर्माण हुआ था । सभी में बाहरी बरामदा बड़ा है तथा भीतर मध्य कमरा (औगन का प्रतिरूप) में स्तम्भ का अभाव है। तीनों दिशाओं में कोठरियां खोदी गई है । जिनमें भिक्षु के लिए प्रान्तर चौकियां बनी है । बरामदे के स्तम्भों में कमल पुरुष का आधार है उस पर सीढीनुमा चौकियां बनी है । जिन पर जानवर की आकृतियां है । गौतमी पुत्र शातकर्णि के विहार में स्तम्भ खुदे है । जिनमें वामन का आकार जुड़ा है । इस विहार में महायान भिक्षुओं का निवास हो जाने पर उनकी बनावट बदल गई ।15 भिक्षुओं को कोठरिया के अतिरिक्त पूजा-स्थान की आवश्यकता विहारों से कुछ भिन्न है । इसके केन्द्रीय कमरे में बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गई। उनकी धार्मिक परम्परा के अनुसार, भाजा, वेदाना, पितलखोरा एवं कार्ले (पूना के समीप) तथा नासिक, अजंता एलोरा (महाराष्ट्र) आदि गुफाऐं भिक्षुओं के निवास के लिए क्रमश तैयार हुई थी । हीनयान तथा महायान मतानुयायियों के द्वारा निर्मित विहारों में कोई मूलतः भेद नहीं था । महायान में आकार प्रकार जोड़े गए थे । अजंता की गुफाऐं पांचवी सदी में तैयार हुई थी । उन विहारों को अलंकृत भी किया गया जो अजंता की निजी विशेषता है एलोरा में कई मंजिल के विहार बने । बम्बई के समीप कन्हेरी के सैकड़ों विहार पश्चिमी भारत में विहार निर्माण की प्रमुखता की याद दिलाते है । इस प्रकार मौर्यकालीन विहार के कल्पना के आधार पर कालान्तर में अत्याधिक विहार बनते गए । मौर्य तथा उत्तर मौर्ययुगीन विहार के रूप में अन्तर भी है । आठवीं सदी तथा पश्चिमी सहानदि पर्वतमाला में विहार खोदे गए थे । किन्तु कालांतर में समतलभूमि पर ईंट प्रस्तर जोड़कर विहार बने । गुफा संख्या 2, 4, 5, 8, 11 तथा 12 महायान गुफाऐं है । केन्द्र स्थल में प्रालवाद आसन तथा धर्मचक्र मुद्रा में बुद्ध प्रतिमा है। बेधिसत्व दोनों पार्श्व में उत्कीर्ण है । बारहवीं गुफा तीन तल की है। इस प्रकार एलोरा की बौद्ध गुफाऐं अजंता की पश्चात् यानी सातवीं सदी के बाद निर्मित हुई थी । नासिक विहार अजंता के समान नासिक विहार का ही नाम उल्लेखनीय है । इस स्थान पर बीस गुफाऐं है जिनमें से 18 चैत्य है । शेष विहार है । विहारों की दीवारों पर क्षत्रप तथा सातवाहन लेख खुदे है । इन विहारों का क्षेत्रफल 40 वर्ग फीट चौकोर है । यज्ञश्री शतकर्णि का विहार 61ग्37 फीट क्षेत्रफल में फैला भीतरी भाग की चौडाई 48 फीट है । दोनों पार्श्वो में आठ कोठरियाँ है । विहार के द्वारमार्ग के सामने पूजास्थल है । इसे महायान विहार कहते हैं ।16 यह अंजता विहार संख्या 16 के समकालीन ज्ञान होती है । महायान के प्रसार से विहारों में निम्न परिवहन स्पष्ट प्रकार होते है । 1. विहार के केन्द्रीय कमरे में बुद्ध प्रतिमा 2. विहार की दीवारों पर उत्कीर्ण आकार एवं आकृतियां 3. विहार केवल शयनस्थान न रहे । 4. भस्मपात्र का पूजा सर्वथा समाप्त 5. ब्राह्मण मत का प्रभाव विहारों का सर्वेक्षण यह बतलाता है कि मौर्यकालीन बराबर तथा नागार्जुनी पर्वत की गुफाऐं सर्वप्रथम निर्मित हुई थी । गया की पहाडि़यों में गुफा खोदना एवं विहार निर्माण का कार्य अशोक ने आरम्भ किया । शुंगकाल में हीनयान युग में पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला में अनगिनत विहार निर्मित किए गए। भारत में प्राचीन युग में अत्यंत आकर्षक सुन्दर तथा कल्पना सहित गुफाऐं निर्मित हुई थी । उनकी समता करना कठिन है । पार्सी ब्राऊन का मत था कि गुफा निर्माण कला भारतवासियों ने ईरान (परसियोलिस) से सीखी । भारत के कलाकार बौद्ध या ब्राह्मण मतानुयायी थे जिन्होंने गुफा को जन्म दिया भारतीय कलाकारों ने अपने झोपड़ी या ग्रह के रूप को ही चट्टानों में खोदकर सुन्दर तथा स्थाई रूप दिया था । विहार में कुआं अध्यायन निर्मित स्थान पर सोने के बैच आदि जोड़ दिए गए । शहर से दूर स्थाई निवास के लिए पत्थर शिलाओं को काट कर विहार तैयार करना एक मात्र उपाय था । सम्भव है कि मौर्य युग के पश्चात् ब्राह्मण धर्माविलंबी शासकों ने असहिष्णुता के कारण भिक्षुओं को दूर हटाकर पर्वत गुफाओं में स्थान दिया हो। बौद्ध विहारों का आरम्भ हीनयान युग में हुआ । पर्वतों को काटकर विशेषकर मूलरूप को ध्यान में रखकर विहार तैयार किए गए थे । परन्तु संख्या को देखकर विहार निर्माण का प्रश्न मूलतः विचारणीन रहा । हीनयान तथा महायान के विहार एक समान न थे हीनयान मत के विहार ग्रामीण गृह योजना को लेकर तैयार हुए ।17 महायान वालों ने उनमें कुछ परिवर्तन किया जिनमें विहार के केन्द्रीय बड़े कमरे का निर्माण उल्लेखनीय है । चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे स्थित है । भाजा विहार भाजा भोरघाट में कार्ले से चार मील पर स्थित है । यह (पूना महाराष्ट्र) में स्थित भाजा में जो गुफाऐं है उनका महत्व उनकी दीवारों पर बनाई गई विशाल मूर्तियों के कारण है ।18 भाजा के विहार का मुख मण्डप 17.5 फुट लम्बा है । इस विहार का पूर्वी सिरा 7 फीट है और पश्चिम सिरा 9.5 फीट चौड़ा है । इस विहार के पिछले भाग में एक दीवार है । जिसमें दो द्वार और एक खिड़की की भॉंति शलाकामय वातयान है । इसके अन्दर 16 फीट 7 इंच का मण्डप है । इस मण्डप के चारों तरफर कोठरियां बनी है । इस सभी कोठरियों में सोने के लिए पत्थर की चौकिया बनी है । नागार्जुनकोंडा विहार यहां विहार एक, दो तीन या चार भुजाओं वाला मिला है ।19 सबसे अधिक तीन भुजाओं वाले विहान निर्मित हुए थे । प्रत्येक भुजा का अपना-अपना बरामदा होता था । भुजायें सामान्यतः केन्द्रीय मण्डप के चारों ओर बनी थी । सामान्यतः विहारों में भोजनालय इत्यादि विहार के भीतर ही होते थे । मुख्य विहारों में वे ब्राह्य अलग बने होते थे । परन्तु दरवाजों द्वारा जुड़े होते थे । प्रवेश मार्ग के बगल की दीवारों को प्लास्टर से अलंकृत किया जाता था । कक्षों की उज्ज्वली दीवारों में पत्थर की पृष्ठावरण वाली शैया होती थी । प्रत्येक विहार के पास चूना बनाने के लिए अपना प्रस्तर द्रोण होता था । इसमें चूने के उस काल में अत्याधिक प्रयोग का प्रमाण मिलता है । विहार की जल निकासी प्रणाली भी भली-भांति विकसित थी । एलोरा के विहार एलोरा भी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है । यह बौद्ध, ब्राह्मण और जैन धर्म से सम्बन्धित सांस्कृतिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था । ऐलोस में लगभग 34 गुफाऐं है जिनमें से गुफा क्रमांक 1 से लेकर गुफा क्रमांक 12 तक की रचनाएं बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है । ऐलोरा के कलर वैभव का उल्लेख फरिश्ता, मसूदी आदि मुस्लिम इतिहासकारों ने भी किया । जब अंजता में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित कलात्मक गतिविधियों का अवसान हुआ तब ऐलोरा में इसका उदय हुआ । परन्तु अजंता की पूर्व परम्परा का निर्वाह ऐलोरा के विहारों में नहीं हुआ । यहां के बौद्ध विहार प्रारम्भ में अत्यन्त साधे और अलंकरण विहीन खोदे गऐ । सातवी शती ई. के उत्तरार्द्ध से बौद्ध धर्म में तान्त्रिक प्रभाव समाविष्ट हुआ जिनसे एलोरा पुरास्थल और यहां की कलात्मक अभिरूचियों को भी अपने अनुरूप ढाला ।20 गुफा क्रमांक 12 वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विहार है । यह तीन मंजिली विहार है जिसे स्थानीय जन तीन थल के नाम से जानते है । इसमें एक बरामदा, सभामंडप, अन्तराल, गर्भगृह और अपवरक आदि वास्तु अंग बनाये गए है । इसके मण्डप में 24 स्तम्भ लगे है । मण्डप के दोनों किनारों की भित्तियों पर तीन-तीन कोठरियों का निर्माण किया गया है । इस विहार में वज्रयान मत का अत्याधिक प्रभाव दृश्यों, महापरिनिर्वाण, बोधिवृद्ध आदि की मूर्तियां अत्यन्त सुन्दर ढंग से उकेरी गई है । ये अंकन अन्तराल और मण्डप की भित्तियां पर किये गए हैं । इसके अलावा इसमें हिन्दू-देवियों और बौद्ध-देवियों की मूर्तियां भी उकेरी गई है । यह विहार सम्भवतः एलोरा का अन्तिम बौद्ध विहार है । इसका निर्माण वास्तु लक्षणों के अनुसार आठवीं शती ई. के प्रथम चरण में हुआ । गया (बिहार) के विहार गुहा-निर्माण के अन्तर्गत विहारों को खुदवाकर दान में देने की प्रथा मौर्य काल में सर्वाधिक रूप से प्रकाश में आती है । गया जिले की पहाडि़यों में अशोक ने कई गुफा विहारों का निर्माण करवाया । अशोक के पौत्र ने भी एक गुहा-विहार का निर्माण करवाया जिसे लोमेश ऋषि की गुफा कहा जाता है । इस गुफा का अग्रभाग व सामने का भाग सर्वोत्तम है । यह बराबर समूह की सबसे प्रसिद्ध गुफा व विहार है । अशोक ने अपने शासन काल में कर्ण चौपाल गुहा विहार व सुदामा गुहा-विहार का निर्माण करवाया जो वास्तुकला की दृष्टि से उत्तम कोटि के है ।