Academic literature on the topic 'विहीर'

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Journal articles on the topic "विहीर"

1

सावंत, यश यादव, та डॉ.निनाद विजय जाधव. "भिवंडी तालुक्यातील पिण्याच्या पाण्याच्या समस्या एक चिकित्सक अभ्यास." International Journal of Advance and Applied Research 6, № 31 (2025): 136–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.15458273.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना :-</strong> ठाणे जिल्ह्यातील भिवंडी तालुक्यात बऱ्याचश्या ग्रामीण भागात आजही पिण्याच्या पाण्याच्या समस्या मोठ्या प्रमाणात भेडसावत आहे त्यामुळे मानवी आरोग्यास धोका निर्माण होत आहे. भिवंडी तालुक्यातील वराळदेवी तलाव हे भिवंडीतील रहिवाशांसाठी पिण्याच्या पाण्याचे मोठे स्त्रोत आहे परंतु औद्योगिकीकरणामुळे येथील वृक्ष मोठ्या प्रमाणात कमी होताना दिसून येतो त्यामुळे पावसाच्या पाण्यावर त्याचा विपरीत परिणाम होत आहे. तसेच भिवंडी शहराच्या आजूबाजूच्या गावातील शेततळ्यातील पाण्याचे प्रमाण देखील कमी होत आहे त्यामुळे जनावरांना लागणारे पाणी यांची उपलब्धता दिवसागणित बिकट होत आहे; परिणामी संपूर्ण सजीव सृष्टी धोक्यात येत आहे
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2

Dalip, Kumar. "प्राचीन भारत में विहार". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 110–15. https://doi.org/10.5281/zenodo.835425.

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Abstract:
बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को विहार कहा जाता है विहार के अन्दर एक बड़ा मण्डप होता था, उसमें तीन या चार छोटी कोठरियां खोदी जाती थी, सामने की दीवार में प्रवेश के लिए एक द्वार होता था और उसके सामने स्तम्भों पर आश्रित एक बरामदा रहता था । भीतरी मण्डप की कोठरिया चौकोर होती थी, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे, एक भिक्षु के लिए कोठरी बनी होती थी,1 दो भिक्षुओं के लिए द्विगर्भ और तीन भिक्षुओं के लिए त्रिगर्भ शालाएं बनाई जाती थी । जहां पर बहुत से भिक्षु निवास करते थे उनको संधाराम कहा जाता था । विहार की कोठरियां छोटे आकार की होती थी । इनका आकार 9ग्9 फूट होता था । इन कोठरियों में एक तरफ भिक्षुओं के सोने के लिए लम्बी चौकियां बनी होत थी।2 मैदानी क्षेत्रों यथा - मथुरा, नालंदा आदि में विहारों को बनवाने हेतु ईंट एवं मिट्टी का प्रयोग किया गया । ह्वेनसांग ने नालंदा विहार के बारे में लिखा है - कि नालंदा में भिक्षुओं को प्रत्येक आवास चार मंजिल का था, माण्डप या देव मूर्तियों अंकित थी । उन सुन्दर विहारों को यवन आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया । कुषाण काल में अनेक बौद्ध विहारों का निर्माण हुआ । कार्ले, बेडाना, नासिक, भाजा, पीतलखोरा, नागार्जुनोकोंडा, कनहेरी इत्यादि स्थानों पर इसी युग में विशाल सुन्दर विहारों का निर्माण हुआ । अजन्ता के विहार अजन्ता महाराष्ट्र में स्थित है । अजन्ता में 29 गुफाओं में से 25 विहार हैं । जिसका वर्णन इस प्रकार है - गुफा संख्या 3 इस को हाथी खाना कहते हैं । यह गुफा एक विहार है। इस गुफा का बरामदा (29ञग्7ञ) है ।3 यह सातवीं शताब्दी का है । इसके बरामदे में चार खम्भे हैं । इस गुफा की दीवारों के चित्र तथा छत का अलंकरण बहुत कम दिखाई देता है । इस गुफा में भगवान बुद्ध तथा बोधिसत्वों के कई चित्र हैं । गुफा संख्या 4, 5, 64 ये सभी गुफाऐं विहार है, गुफा संख्या 4 रंग ‘महल’ चित्रशाला है । गुफा संख्या 4 तथा 5 के सामने एक बहुत बड़ा बरामदा है । जिसमें 20 खम्भे लगे है । गुरुा संख्या 6 अजन्ता में केवल एक ऐसा विहार है जिसमें 2 मंजिल है । इसके ऊपर की मंजिल का बरामदा गिर चुका है । दोनों मंजिल के हाल 53 फुट चौकोर हैं ।5 गुफा संख्या 12, 13 और 8 ये सभी विहार है । इनमें गुफा संख्या 12 सबसे पुरानी है ।6 यह दानवी गुफा के साथ थी । गुफा संख्या 13 का निर्माण बाद में हुआ जब भिक्षुओं की संख्या में वृद्धि हुई । गुफा संख्या 8 एक छोटा विहार है । गुफा संख्या 13 में खम्भे नहीं थे । इसकी माप 14ग्17 फीट है । गुफा संख्या 14, 15, 16 ये भी विहार है । गुफा संख्या 14 में मूर्तिकला तथा पालिश नहीं है । इसकी तिथि 100ई. के लगभग है । गुफा संख्या 15 का बरामदा 30 फुट गुफा के स्तम्भ टूट चुके है ।7 इस गुफा का मण्डप 34 फुट चौकोर है तथा 10 फुट ऊँचा है । इसमें मूर्तिकला का कार्य किया गया है । गुफा संख्या 16, 65 फुट चौकोर विहार है। इसके मण्डप में 20 खम्बे हैं । इसमें महात्मा बुद्ध व बैठे हुए आकृति का निर्माण दिया गया है । गुफा संख्या 11 को महायान युग में बढ़ाया गया यह भी डाक विहार है । गुफा संख्या 21, 22, 23, 24, 25, 27 ये सभी गुफाऐं पहाड़ी की पश्चिमी तरफ गुफाओं की अन्तिम श्रंृखला में खोदी गई है । ये सभी गुफाऐं चौथी सातवीं शताब्दी के मध्य में खोदी गई है ।8 इन सभी गुफाओं के मुख पूर्व की तरफ है । सूर्य का जब प्रकाश इन पर पड़ता है तो ये चमकने लगती हैं। गुफा संख्या 21 एक बड़ा विहार है । बरामदे की दोनों तरफ अंत में छोटे कमरे है । इसका मण्डप 51 फुट चौकोर है । यह पांचवी या छठी शताब्दी ई. का है ।9 गुफा संख्या 22 एक छोटा विहार है । यह 17 फुट चौकोर है । इसमें कोई खिड़की नहीं है । गुफा संख्या 23 भी एक विहार है । यह 51 फुट चौकोर है । यह 12 फुट ऊंचा है इसके अन्दर स्तम्भ है । गुफा संख्या 24 के बरामदे में 6 स्तम्भ है । अगर यह गुफा पूर्ण होती तो यह इस श्रृंखला की सबसे बड़ी तथा सुन्दर गुफा होती, गुफा संख्या 21 भी एक छोटा विहार है । इसमें एक बरामदा है अन्दर कोई चित्रकारी नहीं पाई गई । गुफा संख्या 27 एक 49 फुट चौड़ा तथा 31 फुट लम्बा मिला है । इसके स्तम्भ नहीं है । बाघ के विहार बाघ की गुफाऐं विन्धय पर्वत के दक्षिण में पांच सौ फुट की ऊंचाई पर है । यह ग्वालियर रियासत में है । बाण नदी के तट से लगभग 250 फुट की ऊंचाई पर है । यहां पर पर्वत में 9 गुफाऐं खोदी गई थी । ये सभी विहार है । इस श्रृंखला की पहली गुफा नष्ट हो चुकी है । दूसरी गुफा का नाम पाडवं गुफा है । तीसरी गुफा को स्थानीय लोग हाथी खाना के नाम से जानते है । चौथी गुफा को रंग महल कहा गया है। गुफा संख्या 1 बाघ की पहली गुफा एक छोटे आकार का विहार थी, इसके अन्दर मूर्ति नहीं है । इस गुफा के अन्दर कोई खिड़की नहीं है । इसके सामने एक छोटा बरामदा है । ये गुफाऐं चौथी तथा छठी शताब्दी के मध्य खोदी गई है ।10 गुफा संख्या 2 इस गुफा की दीवार पर स्तूप की आकृति है । यह लगभग 5वीं शताब्दी ई. में खोदी गई है । इस गुफा के खम्बें पर नक्काशी का काम किया गया है । इस गुफा की दीवार पर किसी समय बहुत सुन्दर चित्र रहे होंगे किन्तु अब नष्ट हो चुके है ।11 गुफा संख्या 3 यह गुफा भी एक विहार है । इसकी चित्रकारी कुछ मिट चुकी है । इस गुफा में महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों के कई चित्र है । इस गुफा के चित्र अमरावती के अर्धचित्रों की याद दिलाते हैं । गुफा संख्या 4 चौथी और पांचवी गुफा एक-दूसरे से सटी होने के इनके सामने लगभग 220 फुट का बरामदा है । इस बरामदे में 20 खम्भें है । हर बरामदें का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है । यह इस श्रृंखला की सबसे बड़ी गुफा है । यह 94 फुट चौकोर है ।12 गुफा संख्या 5 यह गुफा 96ग्43 फुट की है । इस गुफा में चार खिड़कियां और एक दरवाजा है । इस गुफा को पाठशाला कहते हैं । इस गुफा के खम्भे आकर्षक का केन्द्र है । इस गुफा के साथ पांच कोठरियां का निर्माण किया गया है । इन कोठरियों में भिक्षु निवास करते थे ।13 गुफा संख्या 6 यह गुफा भी एक विहार है । इसमें किसी प्रकार की कोई विशेषता नहीं है । इस गुफा का कोई बरामदा नहीं इसमें एक दरवाजा और 2 खिड़कियां है यह लगभग 48 फुट चौकोर है । इसके अन्दर 6 खम्भे थे जो अब गिर चुके है ।14 गुफा संख्या 7 यह लगभग 86 फुट चौकोर है । इसमें 20 स्तम्भ है तथा 20 कोठरियां है । यह गिरी हुई छत तथा खम्भें के कारण बंद है । गुफा संख्या 8, 9 इन गुफाओं के अन्दर प्रवेश नहीं किया जा सकता । पितलखोरा के विहार पितलखोरा के भग्न विहार की कोठरियां चौकोर बनी है । पश्चिमी शक-क्षत्रप नहपान तथा दक्षिण के सातवाहन नरेश गौतमी पुत्र श्री शातकर्णि तथा यज्ञश्री के शासन काल (ई. सन् 130 एवं 180ई.) में इन विहार का निर्माण हुआ था । सभी में बाहरी बरामदा बड़ा है तथा भीतर मध्य कमरा (औगन का प्रतिरूप) में स्तम्भ का अभाव है। तीनों दिशाओं में कोठरियां खोदी गई है । जिनमें भिक्षु के लिए प्रान्तर चौकियां बनी है । बरामदे के स्तम्भों में कमल पुरुष का आधार है उस पर सीढीनुमा चौकियां बनी है । जिन पर जानवर की आकृतियां है । गौतमी पुत्र शातकर्णि के विहार में स्तम्भ खुदे है । जिनमें वामन का आकार जुड़ा है । इस विहार में महायान भिक्षुओं का निवास हो जाने पर उनकी बनावट बदल गई ।15 भिक्षुओं को कोठरिया के अतिरिक्त पूजा-स्थान की आवश्यकता विहारों से कुछ भिन्न है । इसके केन्द्रीय कमरे में बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गई। उनकी धार्मिक परम्परा के अनुसार, भाजा, वेदाना, पितलखोरा एवं कार्ले (पूना के समीप) तथा नासिक, अजंता एलोरा (महाराष्ट्र) आदि गुफाऐं भिक्षुओं के निवास के लिए क्रमश तैयार हुई थी । हीनयान तथा महायान मतानुयायियों के द्वारा निर्मित विहारों में कोई मूलतः भेद नहीं था । महायान में आकार प्रकार जोड़े गए थे । अजंता की गुफाऐं पांचवी सदी में तैयार हुई थी । उन विहारों को अलंकृत भी किया गया जो अजंता की निजी विशेषता है एलोरा में कई मंजिल के विहार बने । बम्बई के समीप कन्हेरी के सैकड़ों विहार पश्चिमी भारत में विहार निर्माण की प्रमुखता की याद दिलाते है । इस प्रकार मौर्यकालीन विहार के कल्पना के आधार पर कालान्तर में अत्याधिक विहार बनते गए । मौर्य तथा उत्तर मौर्ययुगीन विहार के रूप में अन्तर भी है । आठवीं सदी तथा पश्चिमी सहानदि पर्वतमाला में विहार खोदे गए थे । किन्तु कालांतर में समतलभूमि पर ईंट प्रस्तर जोड़कर विहार बने । गुफा संख्या 2, 4, 5, 8, 11 तथा 12 महायान गुफाऐं है । केन्द्र स्थल में प्रालवाद आसन तथा धर्मचक्र मुद्रा में बुद्ध प्रतिमा है। बेधिसत्व दोनों पार्श्व में उत्कीर्ण है । बारहवीं गुफा तीन तल की है। इस प्रकार एलोरा की बौद्ध गुफाऐं अजंता की पश्चात् यानी सातवीं सदी के बाद निर्मित हुई थी । नासिक विहार अजंता के समान नासिक विहार का ही नाम उल्लेखनीय है । इस स्थान पर बीस गुफाऐं है जिनमें से 18 चैत्य है । शेष विहार है । विहारों की दीवारों पर क्षत्रप तथा सातवाहन लेख खुदे है । इन विहारों का क्षेत्रफल 40 वर्ग फीट चौकोर है । यज्ञश्री शतकर्णि का विहार 61ग्37 फीट क्षेत्रफल में फैला भीतरी भाग की चौडाई 48 फीट है । दोनों पार्श्वो में आठ कोठरियाँ है । विहार के द्वारमार्ग के सामने पूजास्थल है । इसे महायान विहार कहते हैं ।16 यह अंजता विहार संख्या 16 के समकालीन ज्ञान होती है । महायान के प्रसार से विहारों में निम्न परिवहन स्पष्ट प्रकार होते है । 1. विहार के केन्द्रीय कमरे में बुद्ध प्रतिमा 2. विहार की दीवारों पर उत्कीर्ण आकार एवं आकृतियां 3. विहार केवल शयनस्थान न रहे । 4. भस्मपात्र का पूजा सर्वथा समाप्त 5. ब्राह्मण मत का प्रभाव विहारों का सर्वेक्षण यह बतलाता है कि मौर्यकालीन बराबर तथा नागार्जुनी पर्वत की गुफाऐं सर्वप्रथम निर्मित हुई थी । गया की पहाडि़यों में गुफा खोदना एवं विहार निर्माण का कार्य अशोक ने आरम्भ किया । शुंगकाल में हीनयान युग में पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला में अनगिनत विहार निर्मित किए गए। भारत में प्राचीन युग में अत्यंत आकर्षक सुन्दर तथा कल्पना सहित गुफाऐं निर्मित हुई थी । उनकी समता करना कठिन है । पार्सी ब्राऊन का मत था कि गुफा निर्माण कला भारतवासियों ने ईरान (परसियोलिस) से सीखी । भारत के कलाकार बौद्ध या ब्राह्मण मतानुयायी थे जिन्होंने गुफा को जन्म दिया भारतीय कलाकारों ने अपने झोपड़ी या ग्रह के रूप को ही चट्टानों में खोदकर सुन्दर तथा स्थाई रूप दिया था । विहार में कुआं अध्यायन निर्मित स्थान पर सोने के बैच आदि जोड़ दिए गए । शहर से दूर स्थाई निवास के लिए पत्थर शिलाओं को काट कर विहार तैयार करना एक मात्र उपाय था । सम्भव है कि मौर्य युग के पश्चात् ब्राह्मण धर्माविलंबी शासकों ने असहिष्णुता के कारण भिक्षुओं को दूर हटाकर पर्वत गुफाओं में स्थान दिया हो। बौद्ध विहारों का आरम्भ हीनयान युग में हुआ । पर्वतों को काटकर विशेषकर मूलरूप को ध्यान में रखकर विहार तैयार किए गए थे । परन्तु संख्या को देखकर विहार निर्माण का प्रश्न मूलतः विचारणीन रहा । हीनयान तथा महायान के विहार एक समान न थे हीनयान मत के विहार ग्रामीण गृह योजना को लेकर तैयार हुए ।17 महायान वालों ने उनमें कुछ परिवर्तन किया जिनमें विहार के केन्द्रीय बड़े कमरे का निर्माण उल्लेखनीय है । चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे स्थित है । भाजा विहार भाजा भोरघाट में कार्ले से चार मील पर स्थित है । यह (पूना महाराष्ट्र) में स्थित भाजा में जो गुफाऐं है उनका महत्व उनकी दीवारों पर बनाई गई विशाल मूर्तियों के कारण है ।18 भाजा के विहार का मुख मण्डप 17.5 फुट लम्बा है । इस विहार का पूर्वी सिरा 7 फीट है और पश्चिम सिरा 9.5 फीट चौड़ा है । इस विहार के पिछले भाग में एक दीवार है । जिसमें दो द्वार और एक खिड़की की भॉंति शलाकामय वातयान है । इसके अन्दर 16 फीट 7 इंच का मण्डप है । इस मण्डप के चारों तरफर कोठरियां बनी है । इस सभी कोठरियों में सोने के लिए पत्थर की चौकिया बनी है । नागार्जुनकोंडा विहार यहां विहार एक, दो तीन या चार भुजाओं वाला मिला है ।19 सबसे अधिक तीन भुजाओं वाले विहान निर्मित हुए थे । प्रत्येक भुजा का अपना-अपना बरामदा होता था । भुजायें सामान्यतः केन्द्रीय मण्डप के चारों ओर बनी थी । सामान्यतः विहारों में भोजनालय इत्यादि विहार के भीतर ही होते थे । मुख्य विहारों में वे ब्राह्य अलग बने होते थे । परन्तु दरवाजों द्वारा जुड़े होते थे । प्रवेश मार्ग के बगल की दीवारों को प्लास्टर से अलंकृत किया जाता था । कक्षों की उज्ज्वली दीवारों में पत्थर की पृष्ठावरण वाली शैया होती थी । प्रत्येक विहार के पास चूना बनाने के लिए अपना प्रस्तर द्रोण होता था । इसमें चूने के उस काल में अत्याधिक प्रयोग का प्रमाण मिलता है । विहार की जल निकासी प्रणाली भी भली-भांति विकसित थी । एलोरा के विहार एलोरा भी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है । यह बौद्ध, ब्राह्मण और जैन धर्म से सम्बन्धित सांस्कृतिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था । ऐलोस में लगभग 34 गुफाऐं है जिनमें से गुफा क्रमांक 1 से लेकर गुफा क्रमांक 12 तक की रचनाएं बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है । ऐलोरा के कलर वैभव का उल्लेख फरिश्ता, मसूदी आदि मुस्लिम इतिहासकारों ने भी किया । जब अंजता में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित कलात्मक गतिविधियों का अवसान हुआ तब ऐलोरा में इसका उदय हुआ । परन्तु अजंता की पूर्व परम्परा का निर्वाह ऐलोरा के विहारों में नहीं हुआ । यहां के बौद्ध विहार प्रारम्भ में अत्यन्त साधे और अलंकरण विहीन खोदे गऐ । सातवी शती ई. के उत्तरार्द्ध से बौद्ध धर्म में तान्त्रिक प्रभाव समाविष्ट हुआ जिनसे एलोरा पुरास्थल और यहां की कलात्मक अभिरूचियों को भी अपने अनुरूप ढाला ।20 गुफा क्रमांक 12 वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विहार है । यह तीन मंजिली विहार है जिसे स्थानीय जन तीन थल के नाम से जानते है । इसमें एक बरामदा, सभामंडप, अन्तराल, गर्भगृह और अपवरक आदि वास्तु अंग बनाये गए है । इसके मण्डप में 24 स्तम्भ लगे है । मण्डप के दोनों किनारों की भित्तियों पर तीन-तीन कोठरियों का निर्माण किया गया है । इस विहार में वज्रयान मत का अत्याधिक प्रभाव दृश्यों, महापरिनिर्वाण, बोधिवृद्ध आदि की मूर्तियां अत्यन्त सुन्दर ढंग से उकेरी गई है । ये अंकन अन्तराल और मण्डप की भित्तियां पर किये गए हैं । इसके अलावा इसमें हिन्दू-देवियों और बौद्ध-देवियों की मूर्तियां भी उकेरी गई है । यह विहार सम्भवतः एलोरा का अन्तिम बौद्ध विहार है । इसका निर्माण वास्तु लक्षणों के अनुसार आठवीं शती ई. के प्रथम चरण में हुआ । गया (बिहार) के विहार गुहा-निर्माण के अन्तर्गत विहारों को खुदवाकर दान में देने की प्रथा मौर्य काल में सर्वाधिक रूप से प्रकाश में आती है । गया जिले की पहाडि़यों में अशोक ने कई गुफा विहारों का निर्माण करवाया । अशोक के पौत्र ने भी एक गुहा-विहार का निर्माण करवाया जिसे लोमेश ऋषि की गुफा कहा जाता है । इस गुफा का अग्रभाग व सामने का भाग सर्वोत्तम है । यह बराबर समूह की सबसे प्रसिद्ध गुफा व विहार है । अशोक ने अपने शासन काल में कर्ण चौपाल गुहा विहार व सुदामा गुहा-विहार का निर्माण करवाया जो वास्तुकला की दृष्टि से उत्तम कोटि के है ।
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कोइराला Koirala, नरेन्द्र Narendra प्रसाद Prasad. "“मार्यो च्याङ्बा मार्यो असिनामा पारयो” कथाको सबाल्टर्न विश्लेषण "Maryo Chyangba Maryo Asinama Paryo" Kathako Sabaltern Vishleshan". NUTA Journal 6, № 1-2 (2019): 145–53. http://dx.doi.org/10.3126/nutaj.v6i1-2.23263.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा कथाकार मनु ब्राजाकीद्वारा लिखित मा¥यो च्याङ्बा मा¥यो असिनामा पा¥यो कथालार्ई सबाल्टर्न सिद्धान्तका कोणबाट विश्लेषण गरिएको छ । सदियौँदेखि इतिहास विहीन भएका वा बनाइएका समाजका किनारामा रहेका आवाज विहीन तथा अधिकार विहीन समूदाय नै सबाल्टर्न वर्ग हुन् । सबाल्टर्न एउटा बृहत् सिद्धान्त हो । यसभित्र सबै प्रकारका विभेदहरूका कारण किनारीकृत हुन पुगेका सबै शोषित पीडितहरू अटाउन सक्ने भए पनि यस लेखमा प्रस्तुत कथामा सबाल्टर्न वर्गको वर्गीय, लैङ्गिक र जातीय अवस्था पहिचान गरी समाजमा (कथामा) उनीहरूकोे स्थान, उनीहरूमाथिको प्रभुत्व र उनीहरूको प्रतिरोधको अवस्थाको विश्लेषण गरिएको छ । यस कथामा वर्गीय दृष्टिले निम्न वर्ग, जातीय दृष्टिले निम्न जात (अछुत) र लैङ्गिक दृष्टिले नारी सबाल्टर्न पात्रका रूपमा देखिएका छन् भने उनीहरूको प्रतिनिधित्व समाजसापेक्ष छ, उच्च वर्गीय प्रभुत्वको चक्रमा पिसिएकै कारण उनीहरू सबाल्टर्न हुन पुगेका भए पनि उनीहरूमा प्रतिरोध चेतना न्यून रहेको छ भन्ने निष्कर्ष निकालिएको छ ।
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Pappu, thaakur, та Naarad sinh Dr. "Naxalism collapse in Bihar (विहार में नक्सलवाद का पतन)". International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 1, № 2, April 2021 (2021): 9–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.4718312.

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Abstract:
नक्सलीय समस्या हमारे देश के लिए बड़ा आंतरिक खतरा बन गया है। खासकर 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टिप्पणियों के बाद, यह एक चिंता का विषय बन गया है और साथ ही अकादमिक बहस का विषय भी है। इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर और गहनता से संबोधित करने के लिए नवीन विचार और नए सिरे से योजना बनाई गई है। इस पृष्ठभूमि में, मध्य बिहार का एक मामला अध्ययन इस मुद्दे पर प्रकाश को केंद्रित करने के लिए प्रासंगिक हो जाता है। यह एक स्थापित तथ्य है कि बिहार में नक्सलवाद ने मध्य बिहार के माध्यम से अपना रास्ता बनाया था। जब काउंटरिंसर्जेंसी तंत्र ने पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में नक्सलवाद के पहले बुलबुले को कुचल दिया, तो उसे मध्य बिहार में अपना प्रजनन क्षेत्र मिला। मध्य बिहार में बार-बार नरसंहार और नक्सल आतंक देश के लिए 1980 और 1990 के दशक में चिंता का विषय बन गया। यह तर्क देता है कि बदलती सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के साथ-साथ अन्य कारकों ने मध्य बिहार में माओवादी लोकप्रियता और ताकत को व्यापक रूप से प्रतिबंधित कर दिया।
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रञ्जितकार Ranjitkar, जुनु Junu बासुकला Basukala. "मध्यकालमा बुद्ध धर्म Madhyakalma Buddha Dharma". Historical Journal 11, № 1 (2020): 134–48. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v11i1.34698.

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Abstract:
मध्यकालमा बुद्ध धर्म डा. जुनु बासुकला रञ्जितकार सारांश सन् ८७९ देखि १२०० सम्मको काललाई राजनैनिक रुपले अन्धकार युग भनिए पनि बौद्ध धर्मकोबज्रयानको दृष्टिकोणले हेर्दा चरम अवस्थामा पुगेको समय हो । त्यस समय बौद्ध धर्म, दर्शन, संस्कृत भाषाको अध्ययन अध्यायपनको लगि नेपाल, भारत र तिब्बतको अन्तराष्ट्रिय समन्वय हुँदा नेपाल पुलको रुपमा थियो ।यही समयमा संस्कृत बौद्ध साहित्यहरू प्रज्ञापारमिता, सद्धर्मपुण्डरीकसूत्र, पञ्चरक्षा, नामसंगीति आदि सारेर ग्रन्थ तयार गरी ग्रन्थमा चित्र पनि लेख्ने विकास भएको थियो । बाह्रौँ शताब्दीको अन्त्यतिर भारतमा बौद्ध धर्मको नाशहुनु र यहाँ मल्ल राजाको शासनको शुरू भएपछि काठमाडौँ उपत्यका बज्रयान बौद्ध धर्मको केन्द्र हुनुका साथै तान्त्रिक देवीदेवता पनि केन्द्रस्थल हुन पुग्यो । यहाँका राजाहरूले पनि विहार निर्माण, बौद्ध मूर्ति स्थापना, बौद्धजात्रा गर्नुका साथै तिनीहरू लामो समयसम्म संरक्षण र सम्वद्र्धनको लागि जग्गा जमीनहरू समेत राखे । यहीसमयमा नै ब्राह्मण धर्मको प्रवेश भएपछि खुशीले वा करबलले भिक्षु भिक्षुणीहरू गृहस्थी जीवनमा आउनुका साथै ब्राह्मण धर्ममा जस्तै बौद्धहरूमा पनि काम अनुसारको जात विभाजन कार्य पनि भयो । यही समयमा पश्चिम नेपालमा चारसय वर्षसम्म खस मल्ल राजाहरू बौद्ध धर्मका अनुयायी भएकाले बौद्ध धर्मको विकास हुनुका साथैविहार, चैत्य र बुद्धका मूर्तिहरू समेत स्थापना भएको थियो । मल्लकालको उत्तराद्र्धमा पुराना विहार र चैत्यहरूजीर्णोद्धार गर्नुका साथै नयाँ विहार र चैत्य निर्माणमा निरन्तरता नै भइरह्यो ।
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Kumar, Dalip. "Vihara in ancient India." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 5, no. 7 (2017): 110–15. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i7.2017.2111.

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Abstract:
The abode of the Buddhist monks is called Vihara, inside the Vihara there was a large pavilion, three or four small chambers were dug in it, there was a door to enter the front wall and in front of it there was a verandah dependent on the pillars. . The inner pavilion had a chakriya chakor, in which Buddhist monks resided, a cell was built for a monk, 1 a bicameral for two monks, and a tricyclic schools for three monks. Where many monks resided they were called Sandharam. The rooms of the Vihar were of small size. Their size was 9 G9 feet. These chambers used to have long checks made for monks to sleep on one side.&#x0D; बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को विहार कहा जाता है विहार के अन्दर एक बड़ा मण्डप होता था, उसमें तीन या चार छोटी कोठरियां खोदी जाती थी, सामने की दीवार में प्रवेश के लिए एक द्वार होता था और उसके सामने स्तम्भों पर आश्रित एक बरामदा रहता था । भीतरी मण्डप की कोठरिया चैकोर होती थी, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे, एक भिक्षु के लिए कोठरी बनी होती थी,1 दो भिक्षुओं के लिए द्विगर्भ और तीन भिक्षुओं के लिए त्रिगर्भ शालाएं बनाई जाती थी । जहां पर बहुत से भिक्षु निवास करते थे उनको संधाराम कहा जाता था । विहार की कोठरियां छोटे आकार की होती थी । इनका आकार 9ग्9 फूट होता था । इन कोठरियों में एक तरफ भिक्षुओं के सोने के लिए लम्बी चैकियां बनी होत थी।
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., हर्षवर्धन, та सुहासिनी बाजपेयी. "उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों में संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद की भूमिका". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 10, № 73 (2022): 17735–46. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v10i73.11679.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र में उच्च प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद की भूमिका का अध्ययन किया गया है। इस शोध अध्ययन के उद्देश्य उच्च प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद संचालित एवं बाल संसद विहीन विद्यालयों की प्रभाविता का अध्ययन करना है एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय में संवैधानिक साक्षरता के विकास में लिंग एवं क्षेत्र के आधार पर बाल संसद की प्रभाविता का अध्ययन करना है। प्रस्तुत शोध में जनसंख्या के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रयागराज जिले के नैनी एवं विकास खण्ड चाका में संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों के कक्षा-8 के अध्ययनरत सत्र 2021-2022 के विद्यार्थियों को चुना गया है तथा उद्देश्यपूर्ण विधि से प्रतिदर्श के रूप में 13 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में से कुल 480 विद्यार्थियों का चयन किया गया है जिसमें बाल संसद संचालित विद्यालय के विद्यार्थियों की संख्या 237 एवं बाल संसद विहीन विद्यालय के विद्यार्थियों की संख्या 243 है। आंकड़ों का संकलन करने के लिए स्वनिर्मित संवैधानिक साक्षरता मापनी का निर्माण किया गया है तथा प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण एवं सार्थकता स्पष्ट करने के लिए विवरणात्मक सांख्यिकी का प्रयोग किया गया है। शोध निष्कर्ष में यह पाया गया कि संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद संचालित एवं बाल संसद विहीन विद्यालय के विद्यार्थियों की अभिवृत्ति में सार्थक अंतर है। संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद संचालित शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों एवं बाल संसद संचालित ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों की अभिवृत्ति में सार्थक अंतर है। जबकि संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद संचालित विद्यालय के लड़कों एवं लड़कियों की अभिवृत्ति में कोई सार्थक अंतर नहीं है।
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प्रो., डॉ. साताप्पा शामराव सावंत. "दलित आत्मकथाओं में चित्रित हाशिए के समाज की समस्याए". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 202–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.10500450.

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Abstract:
दलित आत्मकथा विश्व साहित्य की अत्यंत महनीय उपलब्धि कही जा सकती है। भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अथक प्रयासों से सदियों से वाणी विहीन, वंचित समाज व्यवस्था को अपना स्वतंत्र मंच प्राप्त हुआ। दलित साहित्य का प्रचार-प्रसार सभी भारतीय भाषाओं में हो चुका है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा &ldquo;मी कसा झालो&ldquo; शीर्षक से लिखी थी। जो विश्व दलित साहित्य की नींव बन गई। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर दलित साहित्य के निर्माता तथा उन्नायक रहे है।
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Baudh, Prashant Kumar. "National Consciousness in Bhojpuri Folk Literature." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 2 (2022): 55–58. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i02.010.

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Abstract:
Bhojpuri is the most widely spoken language of India. Its folk literature is equally extensive and inexhaustible. There is no consensus on its Bhojpuri nomenclature, but most scholars tell it to be related to 'Bhojpur' village of Ara (Bhojpur) division under the present Vihar province - 'Old Bhojpur' in Bhojpur pargana near Buxar in Shahabad district of Vihar province. There is a village called Now the name Bhojpur is used for the nearby villages named "New Bhojpur" and "Old Bhojpur". Although all the voices of consciousness are visible in Bhojpuri folk-literature, but in Bhojpuri folk-literature the distinctive color of the voices of national consciousness is visible.&#x0D; Abstract in Hindi Language: &#x0D; भोजपुरी भारत की सर्वाधिक विस्तार वाली विभाषा है। इसका लोक साहित्य भी उतना ही विस्तृत और अगाध है। इसके भोजपुरी नामकरण पर मतैक्य नहीं मिलता, किन्तु अधिकांश विद्वान इसे वर्तमान विहार प्रान्त के अन्तर्गत ‘‘आरा (भोजपुर) प्रमण्डल के ‘भोजपुर’ ग्राम से संबंद्ध बताते है- विहार प्रान्त के शाहाबाद जिले में बक्सर के पास भोजपुर परगना में ‘पुराना भोजपुर’ नामक ग्राम है। अब भोजपुर नाम ‘‘ नया भोजपुर’’ और ‘‘पुराना भोजपुर’’ नामक पास-पास बसे ग्रामों के लिए व्यवहत होता है। यूं तो भोजपुरी लोक-साहित्य में चेतना के सभी स्वर दिखाई पड़ते है परन्तु भोजपुरी लोक-साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वरों का विशिष्ट रंग दिखाई पड़ता है।&#x0D; Keywords: भोजपुरी, लोक-साहित्य, राष्ट्रीय चेतना।
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ताशतेमीरोवा, शाहनाजा. "उज्बेकिस्तान और भारत : मीडिय क्षेत्र में सहयोग के नए पहलू". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 70–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765091.

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Abstract:
उन्हें मास मीडिया इसलिए कहा जाता क्योंकि वे एक साथ बहुत बड़ी संख्या में दर्शकों, श्रोताओं एवं पाठकों तक पहुँचते हैं। उन्हें कभी-कभी जनसंचार (मास कम्युनिकेशन) के साधन भी कहा जाता है। आपकी पीढ़ी के बहुत से लोगों के लिए जनसंपर्क के किसी माध्यम से विहीन दुनिया की कल्पना करना भी संभवत: कठिन होगा।डेटा की तरह मीडिया भीलैटिन से सीधे उधार लिए गए शब्द का बहुवचन रूपहै। एकवचन, माध्यम, ने शुरू में "एक हस्तक्षेप करने वाली एजेंसी, साधन या साधन" का अर्थ विकसित किया और इसे पहली बार दो शताब्दियों पहले समाचार पत्रों पर लागू किया गया था।
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