Academic literature on the topic 'कूल प्रणाली'

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Journal articles on the topic "कूल प्रणाली"

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वन्दना, अग्निहोत्री. "नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883519.

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Abstract:
जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा
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क ुमारी, स. ुषमा. "सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं की भूमिका : बिहार के विशेष संदर्भ म". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 53–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20199.

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Abstract:
1914 इ र्. में गाँधीजी क े भारत आगमन क े समय प ूव र् में समाज सुधारकों द्वारा किये गये सुधारों क े परिणाम स्वरूप शिक्षित परिवारों में स्त्रियों की स्थिति सुधरन े लगी थी और महिलाओं क े प ्रति सामाजिक एव ं शैक्षणिक मान्यताओं में परिवत र्न की प ्रक्रिया चल रही थी ल ेकिन उसे स्वराज आंदोलन क े कार्यक्रमों द्वारा साव र्जानिक सेवा क े लिए घर से बाहर लान े तथा कुरीतियों से सावधान कर उसक े सद ्गुणों को व्यापक बनान े और आर्थिक स्वावल ंबन, साहस एव ं उत्तरदायित्व क े साथ ऊँचा उठान े का सतत ् प ्रयास वास्तव में गाँधीजी न े ही किया। स्वत ंत्रता आंदोलन में ‘भारतीय नारी’ का योगदान मुख्यतया 1920 क े बाद से अधि
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डा, ॅ. स्मिता खानवलकर. "भारतीय फिल्म संगीत म ें रसानुक ूल रंग-स ंयोजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889265.

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Abstract:
मानव-सभ्यता क े साथ-साथ कलाओं का विकास हुआ। चा ैसठ कलाओं में संगीत-कला, चित्र-कला आ ैर काव्य-कला विषेष महत्व रखती हैं। इनमें भी संगीत-कला अधिक प ्रभाव डालने वाली कला है। मनुष्य के हृदय में सुप्त भावा ें को जागृत करने में संगीत जितना सक्षम ह ै, उतनी आ ैर कोई विद्या नहीं। जो भाव चित्र क े माध्यम से व्यक्त नहीं किये जा सकते, उन्ह ें काव्य या भाषा क े माध्यम से अभिव्यक्त किया जा सकता ह ैं आ ैर जिन भावों का े व्यक्त करने में भाषा भी असमर्थ रहती ह ै, उन्ह ें संगीत सहज ही व्यक्त कर देता ह ै।।शाॅप ेन हाॅवर का कहना है - ’’क ेवल संगीत ही ऐसी कला है, जो श्रोताआ ें से सीधा संबंध रखती ह ै। इसे किसी भी माध्
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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डा, ॅ. नीरज राव. "स ंगीत क े प्रचार-प्रसार म ें स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886994.

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Abstract:
मनुष्य को आदिकाल से ही संगीत मना ेरंजन एव ं आमोद-प्रमोद का साधन रहा ह ै। आदिकाल से ही मानव ने अपने मना ेरंजन क े साधन क े लिये विभिन्न प्रकार क े प ्रया ेग किये जैसे-जैसे मानव अपनी सभ्यता का विकास करता गया व ैसे-व ैसे उसकी समझ आ ैर सूझ-बूझ ने नृत्य, गायन आ ैर वादन की ओर आकर्षि त किया। मानव ने सभ्यता और संस्कृति को समझकर अपने का े प ्रकृति क े साथ तालमेल करते ह ुए संगीत का े सीखा। हमारे पा ैराणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख ह ै कि माँ पार्वती की गायन मुद्रा को देखकर भगवान षंकर ने क्रमषः पाँच राग हिंडा ेल, दीपक, श्री, मेघ, का ैषिक आदि रागों की रचना की एवं संगीत की उत्पत्ति भगवान षिव क े ताण्
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श्रीमती, भारती पहाड़िया. "प्रकृति एव ं र ंग (पर्यावरण के सन्दर्भ में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890583.

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Abstract:
असंख्य पहाड़, प ेड़, नदिया ं, झीलें, फ ूल-पत्तियां, पश ु-पक्षी अथवा मानव मात्र इस प्रकृति के अ ंग ह ै। मानव ने अपनी सा ैन्दर्या नुभूति का े कला के माध्यम से व्यक्त किया ह ै। रवीन्द्रनाथ टैगा ेर क े अनुसार - “ कलाकार प्रकृति प े्रमी ह ै। अतः उसका दास भी ह ै आ ैर प ्रेमी भी। ” कलाकार प ्रकृति में व्याप्त रंगतों का े एव ं उनक े प ्रभाव को फलक पर उतारते ह ैं, अमूर्त अभिव्यंजनावादी वस्तु का सूक्ष्म अध्ययन का उसक े प ्रभावों का तूलिकाघातों क े व ैविध्य से प ्रभावपूर्ण बनाते ह ै ं। इस प्रकार रंगा ें क े आकर्ष ण से चित्र आ ैर जीवन सजीव हो उठते ह ै ं। मानव जीवन में रंग का महत्वप ूर्ण स्थान है। रंगा े ं
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प, ्रो. सुनीता जैन. "महान संगीतज्ञ तानस ेन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886067.

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Abstract:
तानस ेन एक महान संगीतज्ञ थे। अब ुल फजल बादशाह अकबर क े उदार संरक्षण में विभिन्न संगीतज्ञा ें क े हा ेने का वर्ण न करता ह ै, उनमें वह पहला स्थान संगीत सम्राट तानस ेन का े प ्रदान करता ह ै।। तानसेन उस युग क े सर्व श्र ेष्ठ प ्रतिभावान संगीतज्ञ थ े। तानस ेन की प्रशंसा करते ह ुए अब ुल फजल ने लिखा ह ै ’’ भारत में उसक े समान गायक एक सहस्त्र वर्षो से नहीं ह ुआ’’ तानस ेन का जन्म 1531-32 में ग्वालियर से लगभग 43 किला ेमीटर दूर ब ेहट ग्राम में एक गा ैड़ ब ्राम्हण परिवार में ह ुआ था। इनका प ्रारंभिक नाम त्रिलोचन पांडे था, बाल्यकाल से ही उन्ह ें संगीत में विशेष अभिरूचि थी। ग्वालियर के नरेश मानसिंह तोमर ने
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राय, अजय क. ुमार. "जनसंख्या दबाव से आदिवासी क्षेत्रों का बदलता पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्रभाव (बैतूल-छिन्दवाड़ा पठार के विशेष सन्दर्भ में)". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 31–38. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20214.

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Abstract:
जनजातीय पारिस्थितिकी म े ं वन, क ृषि म े ं स ंलग्नता, आवास, रहन-सहन का स्तर, स्वास्थ्य स ुविधाआ े ं का अध्ययन आवश्यक हा ेता ह ै। सामान्यतः धरातलीय पारिस्थ्तििकी का े वनस्पति आवरण क े स ंदर्भ म ें परिभाषित किया जाता ह ै। अध्ययना ें स े यह स्पष्ट ह ैं कि यदि किसी स्थान पर जनस ंख्या अधिक ह ैं आ ैर यदि उसकी व ृद्धि की गति भी तीव ्र ह ै ं ता े वहा ं पर अवस्थानात्मक स ुविधाआ ंे क े निर्मा ण क े परिणास्वरूप तथा विकासात्मक गतिविधिया ें क े कारण विद्यमान स ंसाधना ें पर दबाव निर ंतर बढ ़ता ही जाता ह ैं, प ्रस्त ुत अध् ययन म े ं शा ेधार्थी आदिवासी एव ं वन बाह ुल्य क्ष ेत्र ब ैत ूल-छि ंदवाड ़ा पठार म ें ज
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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